आज भी एक IPS को अपनी बारात निकालने के लिए पुलिस बुलानी पड़ती है, तो फिर कैसे क्रीमी लेयर की बात कर सकते हैं – चिराग पासवान

Even today an IPS has to call the police to take out his marriage procession, then how can we talk about creamy layer – Chirag Paswan
Even today an IPS has to call the police to take out his marriage procession, then how can we talk about creamy layer – Chirag Paswan

अनुसूचित जाति तथा अनुसूचित जनजाति के आरक्षण में वर्गीकरण व क्रीमी लेयर के ऊपर सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर विवाद थमता नजर नहीं आ रहा है। सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के खिलाफ पहले भी दलित समुदायों ने आपत्ति जताई थी, जिस समय यह फैसला आया था। दलित समुदायों तथा बहुजन संगठनों ने सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले को दलित समाज के एकता को तोड़ने वाला बताया। उन्होंने आरोप लगाया कि सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला किसी को फायदा पहुंचाने के लिए नहीं, बल्कि दलित समाज को भाई-भाई में लड़वाने और उसकी एकजुटता को तोड़ने के लिए आया है।
आपको बता दें कि एससी–एसटी आरक्षण में वर्गीकरण तथा क्रीमी लेयर को लेकर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ दलित समुदाय तथा बहुजन संगठनों ने 21 अगस्त को पूरे देश में भारत बंद बुलाया था। भारत बंद का असर बिहार, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, राजस्थान, महाराष्ट्र के साथ-साथ पूरे देश भर में देखने को मिला। भारत बंद में जहां बहुजन समाज पार्टी और आजाद समाज पार्टी (कांशीराम) ने मुख्य भूमिका निभाया, वहीं राष्ट्रीय जनता दल जैसी क्षेत्रीय पार्टियों ने अपना समर्थन दिया।

चिराग पासवान ने भी मोर्चा खोल दिया

सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के खिलाफ अभी तक जहां दलित समुदायों व बहुजन संगठनों के साथ-साथ कुछ विपक्षी दलों ने अपनी बात रख रहे थे, तो वहीं अब सरकार के सहयोगी दलों ने भी कोर्ट केस फैसले पर अपने नाराजगी जाहिर की। मोदी सरकार के सहयोगी दलों में से एक लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) खुलकर इस फैसले के खिलाफ आ गए। पार्टी प्रमुख चिराग पासवान ने दलितों के द्वारा बुलाए गए भारत बंद का समर्थन किया। साथ ही उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर भी आपत्ति जताई, जिसमें अनुसूचित जाति व अनुसूचित जनजाति के आरक्षण में क्रीमी लेयर की बात कही गई थी। आपको बता दें कि चिराग पासवान वर्तमान में मोदी सरकार में केंद्रीय मंत्री हैं और उनकी पार्टी सत्ताधारी दल एनडीए का अहम हिस्सा है।

दलितों के साथ समाज में भेदभाव आज भी जारी है : चिराग पासवान

केंद्रीय मंत्री व लोजपा(रामविलास) प्रमुख चिराग पासवान ने कहा कि – जिस समुदायों के साथ आज भी जाति के आधार पर भेदभाव किया जाता हो उस समुदायों के बीच क्रीमी लेयर का प्रावधान कैसे किया जा सकता है?उन्होंने अपनी बात को रखते हुए कहा कि – आज भी देश में एक दलित युवक को घोड़ी पर चढ़ने से रोका जाता है। एक दलित परिवार को मंदिर में प्रवेश करने से रोका जाता है, चाहे वह इस देश के राष्ट्रपति ही क्यों ना हो। तो ऐसे में कैसे कहा जा सकता है कि अब जातिगत भेदभाव खत्म हो गया? चिराग पासवान ने अपनी बात को आगे बढ़ते हुए कहा कि – हद तो तब हो जाती है, जब हाल ही के दिनों में एक IPS ऑफिसर को अपनी बारात निकालने के लिए नहीं दिया गया। उनका कसूर सिर्फ इतना ही था कि वह एक दलित परिवार से ताल्लुक रखता था। उस दलित IPS ऑफिसर को अपनी बारात निकालने के लिए पुलिस प्रशासन से सुरक्षा मांगना पड़ा, तब जाकर वह अपनी बारात निकल पाया। उन्होंने कहा कि जिस देश में दलित समुदाय के साथ IAS–IPS बन जाने के बाद भी उसके साथ जाति के आधार पर भेदभाव किया जाता हो, तो ऐसे में कैसे अनुसूचित जाति–जनजाति के आरक्षण में क्रीमी लेयर का प्रावधान हो सकता है?

मुख्यमंत्री बनने के बाद भी जातिगत भेदभाव खत्म नहीं होता है

केंद्रीय मंत्री तथा लोजपा (रामविलास) प्रमुख चिराग पासवान ने अपनी बात को रखते हुए कहा कि सामान्य दलित या आईएएस आईपीएस को छोड़िए यदि आप मुख्यमंत्री भी बन जाते हैं, तब पर भी जाति आपका पीछा नहीं छोड़ता है। उन्होंने आगे कहा कि बिहार में एक पूर्व मुख्यमंत्री भी जब मुख्यमंत्री रहते एक मंदिर में दर्शन के लिए गए थे, तो उनके निकलते ही उस मंदिर को वहां के पुजारी द्वारा गंगाजल से धोया गया। आज की तारीख में समाज में इस प्रकार की भेदभाव के तमाम उदाहरण देखने को मिलता है। ऐसे में कोई एससी–एसटी में क्रीमी लेयर की बात कैसे कर सकता है?
आपको बता दें कि चिराग पासवान जिस पूर्व मुख्यमंत्री का उदाहरण दे रहे थे, वह कोई और नहीं बल्कि बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री और वर्तमान में मोदी सरकार में केंद्रीय मंत्री जीतन राम मांझी थे। यह घटना साल 2014 का है, जब जीतन राम मांझी बिहार के मुख्यमंत्री के पद पर थे। बिहार के तत्कालीन मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी मधुबनी जिले में स्थित परमेश्वरी स्थान नामक मंदिर में दर्शन के लिए गए थे। जीतन राम मांझी जब उस मंदिर से वापस लौटे तो उस मंदिर के पुजारी के साथ-साथ वहां के स्थानीय लोगों ने पूरे मंदिर परिसर को गंगाजल से धोया था। हालांकि इस घटना के बाद उस समय भी काफी विवाद बढ़ा। खुद जीतन राम मांझी भी इस बात को स्वीकारते हैं कि – मेरे मंदिर से जाने के बाद वहां के पुजारियों के द्वारा पूरे मंदिर परिसर और वहां के प्रतिमाओं को गंगाजल से धोया गया था।

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