
बिहार के पूर्णिया जिले के रुपौली विधानसभा सीट पर हुए उपचुनाव का परिणाम इस बार बेहद चौंकाने वाले रहे हैं। इस सीट पर निर्दलीय उम्मीदवार शंकर सिंह ने जदयू और राजद के धुरंधरों को परास्त कर सभी को हैरान कर दिया। उनकी इस जीत ने पूर्णिया लोकसभा चुनाव 2024 के परिणाम की याद को ताजा कर दिया, जहां निर्दलीय प्रत्याशी पप्पू यादव ने राजद और जदयू जैसे बड़े पार्टियों के उम्मीदवारों को करारी शिकस्त दी थी। रूपाली में हुए उप चुनाव में शंकर सिंह को कुल 68070 मत प्राप्त हुए। उन्होंने अपने निकटतम प्रतिद्वंद्वी जदयू के प्रत्याशी कलाधर प्रसाद मंडल को 8246 मतों से पराजित किया। वहीं राष्ट्रीय जनता दल के उम्मीदवार बीमा भारती को सिर्फ 30619 वोट ही मिले और वह 37451 वोट से हार गई। बीमा भारती तीसरे स्थान पर रही। तो आईए जानते हैं कि आखिर कौन है यह शंकर सिंह जिन्होंने बताओ निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में जदयू और राजद जैसे बड़ी पार्टियों के उम्मीदवारों को धूल चटा दिया।
कौन है निर्दलीय उम्मीदवार शंकर सिंह
शंकर सिंह इस इलाके में दबंग और बाहुबली नेता के तौर पर जाने जाते हैं। शंकर सिंह ने साल 2005 में राजनीतिक जीवन में कदम रखा। उन्होंने उस दौरान रामविलास पासवान के लोक जनशक्ति पार्टी से चुनाव जीतकर विधानसभा पहुंचे। शंकर सिंह उत्तर लिबरेशन आर्मी (बिहार) के कमांडर रहे हैं। रुपौली में इसका अच्छा प्रभाव माना जाता है।
उत्तर लिबरेशन आर्मी क्या है
उत्तर लिबरेशन आर्मी एक राजपूत मिलिशिया (लड़ाकू संगठन) थी, जिसकी स्थापना बूटन सिंह ने किया था। बूटन सिंह ने इस संगठन की स्थापना पूर्णिया में पप्पू यादव के बढ़ते प्रभाव को रोकने के लिए किया था। साल 2000 में बूटन सिंह की हत्या के बाद उत्तर लिबरेशन आर्मी की कमान शंकर सिंह ने संभाली। शंकर सिंह के नेतृत्व में इस संगठन में मतदाताओं को धमकाने और प्रभावित करने के साथ-साथ क्षेत्र में बूथ कैप्चरिंग में मुख्य भूमिका निभाया। इन सभी कार्यों के जरिए यह धीरे-धीरे राजनीतिक रूप से प्रभावशाली हो गई जिसके कारण उच्च जाति के उम्मीदवारों ने अपने प्रचार प्रसार के लिए इसका समर्थन मांगना शुरू कर दिया। इसी संगठन ने उदय पप्पू सिंह को भी तैयार किया और उसका समर्थन किया, बाद में उसको भारतीय जनता पार्टी में शामिल करवाया। पप्पू सिंह साल 2004 से 2014 तक दो कार्यकालों के लिए पूर्णिया लोकसभा क्षेत्र से सांसद बने।
शंकर सिंह के आपराधिक रिकॉर्ड
चुनावी हलफनामे के मुताबिक शंकर सिंह पर कुल 9 मुकदमे दर्ज है इनमें हत्या के प्रयास, उगाही, एससी–एसटी के खिलाफ जाति सूचक शब्द का इस्तेमाल करना शामिल है। हालांकि किसी भी मुकदमे में इन्हें सजा नहीं दी गई है और ना ही इस पर अभी तक कोई फैसला आया है। यह सभी मुकदमे कोर्ट में विचाराधीन है।
अगड़ी जाति में अच्छी छवि
शंकर सिंह की छवि अगड़ी जातियों के बीच अच्छी मानी जाती है। उन्हें अगड़े जाति के लोग संरक्षक के तौर पर पेश करते आए हैं। अगड़ी जातियों में खासकर राजपूत जाति के बीच उनकी अच्छी पकड़ है। इसका एक वजह है कि वह खुद राजपूत जाति से आते हैं। दूसरी वजह है कि लिबरेशन आर्मी के कमांडर होने के नाते उन्होंने राजपूतों के बीच अच्छी पैठ बना ली। हालांकि इस चुनाव में उन्हें अगड़ी जाति के साथ-साथ पिछड़ी जाति का भी वोट मिला है। मीडिया रिपोर्ट की माने तो शंकर सिंह ने पिछड़ी जातियों के वह समूह जो या तो भाजपा को वोट करते हैं या तो जदयू को, उनको अपने साथ लाने में कामयाब रहे। यही कारण है कि जब उन्हें जदयू से टिकट नहीं मिला तो निर्दलीय ही मैदान में उतारने का फैसला लिया।
शंकर सिंह पिछड़ी जातियों को गोलबंद करने में सफल रहे
स्थानीय सूत्रों के अनुसार शंकर सिंह काफी दिनों से सभी समाज के लोगों के बीच में अपनी सक्रियता दिखा रहे थे। उनका नजर पिछड़ी जातियों के उन समूहों पर था जो राजद के परंपरागत वोट बैंक नहीं है। यानी वह या तो जदयू को वोट करते हैं या फिर भाजपा को। इस समूह में खासकर EBC समुदाय के लोग शामिल होते हैं। शंकर सिंह इसी समूह को अपने पाले में लाने का प्रयास कर रहे थे जिनमें वह सफल भी रहे।