जोर पकड़ने लगा मराठा आरक्षण की मांग

Maratha Reservation: Demand for Maratha reservation is gaining momentum again before Maharashtra assembly elections! Movement workers sit on hunger strike
Maratha Reservation: Demand for Maratha reservation is gaining momentum again before Maharashtra assembly elections! Movement workers sit on hunger strike

महाराष्ट्र में इसी वर्ष अक्टूबर महीने में विधानसभा का चुनाव होना है। लेकिन उससे पहले एक बार फिर से राज्य में मराठा आरक्षण की मांग को लेकर आंदोलन तेज हो गया है। मराठा आरक्षण के आंदोलन का नेतृत्व कर रहे हैं सामाजिक कार्यकर्ता मनोज जरांगे एक बार फिर 20 जुलाई से अनिश्चितकालीन अनशन पर बैठ गए। उन्होंने राज्य के भाजपा सरकार पर हमला बोलते हुए कहा कि – भाजपा हमें बेवकूफ बना रही है वह मराठा आरक्षण के मुद्दे की सारी जिम्मेदारी विपक्षी दलों पर डाल रही है।
उन्होंने कहा कि – हम उसे मसौदा अधिसूचना के क्रियान्वयन के लिए अनशन कर रहे हैं, जिसमें कुनबियों को मराठा समुदाय के सदस्यों का रक्त संबंधी माना गया है। आगे उन्होंने भाजपा सरकार से सवाल करते हुए कहा कि – सरकार मराठा सरकार आरक्षण पर विपक्षी दलों से उसका रुख क्यों पूछ रही है? भाजपा को स्पष्ट करना चाहिए की मराठाओं को आरक्षण मिलने जा रहा है या नहीं!
मनोज जरांगे ने यह बात महाराष्ट्र के उपमुख्यमंत्री और भाजपा नेता देवेंद्र फडणवीस के उस बयान पर कहा, जिसमें मराठा आरक्षण पर विपक्षी दलों को अपना रुख स्पष्ट करने को कहा गया था। जरांगे ने उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस के बयान की निंदा करते हुए कहा कि – सरकार दो साल से अधिक समय से सत्ता में है, लेकिन मराठाओं को आरक्षण दिलवाने के बजाय वह आज भी विपक्ष पर ही सारी जिम्मेदारी थोप रही है।

मराठा आरक्षण आंदोलन का इतिहास

आपको बता दे की मराठा आरक्षण की मांग आज से नहीं हो रही है। इसका इतिहास बहुत पुराना है। मराठा आरक्षण की मांग को लेकर मराठा समुदाय द्वारा लंबे समय से आंदोलन किया जा रहा है। आज के इस आर्टिकल में हम मराठा आरक्षण के इतिहास पर एक नजर डालेंगे। सबसे पहले हम लोग मराठा समुदाय के इतिहास के बारे में जानेंगे।
मराठा जातियों का एक समूह है जिसमें किसान और जमींदार के अलावा अन्य व्यक्ति भी शामिल है। यह समुदाय महाराष्ट्र राज्य के कुल आबादी का लगभग 33% है। हालांकि अधिकांश मराठा मराठी भाषी है, लेकिन सभी मराठी भाषा व्यक्ति मराठा समुदाय से नहीं है। ऐतिहासिक रूप से मराठा समुदाय की पहचान बड़ी भूमि जोत वाली योद्धा जाति के रूप में की गई है। लेकिन पिछले कुछ वर्षों में भूमि विखंडन, कृषि संकट, बेरोजगारी तथा शैक्षिक अवसरों की कमी जैसे कारकों के कारण कई मराठा लोगों को आर्थिक रूप से पिछड़ेपन का सामना करना पड़ रहा है। हालांकि यह समुदाय अभी भी ग्रामीण अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। इसलिए मराठा समुदाय के लोग सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्ग की श्रेणी के तहत सरकारी नियुक्तियां तथा शैक्षिक संस्थानों में आरक्षण की मांग कर रहे हैं।

मराठा आरक्षण की मांग सबसे पहले कब की गई थी

मराठा आरक्षण की मांग सर्वप्रथम कब किया गया था इसका कोई ठीक-ठाक तारीख तो बताना मुश्किल है, लेकिन एक जानकारी के अनुसार सर्वप्रथम इसकी मांग वर्ष 1982 को माना जाता है। 22 मार्च 1982 को अन्ना साहेब पाटिल ने मंडल आयोग का विरोध करते हुए मराठा आरक्षण के साथ-साथ 11 अन्य मांगों के लिए मुंबई में पहला मार्च निकाला। यह मराठा आरक्षण की मांग के लिए पहला आंदोलन था। उस समय मराठा समुदाय को आर्थिक मानदंडों के आधार पर आरक्षण देने की भी मांग की गई थी। लेकिन तत्कालिक सरकार ने उसकी एक भी मांग को स्वीकार नहीं किया और ना ही भविष्य में ऐसा कोई आश्वासन दिया। सरकार के इस रवैया से निराश होकर अन्ना साहेब पाटिल ने आत्महत्या कर लिया। अन्ना साहब की आत्महत्या के बाद यह आंदोलन एक जन सैलाब का रूप ले लिया। अन्ना साहेब पाटिल की आत्महत्या के बाद उमड़े जन सैलाब ने मराठा आरक्षण की मांग को एक मजबूत आधार दे दिया। इस घटना के बाद सभी मराठा समुदाय के लोग मराठा आरक्षण के मुद्दे पर एक साथ आने लगे।

महाराष्ट्र विधानसभा ने मराठा आरक्षण को स्वीकार किया था

मराठा आरक्षण की मांग दिनों दिन बढ़ते जा रहा था और इसके लिए लोग जगह-जगह आंदोलन कर रहे थे। जब महाराष्ट्र सरकार को उसके आंदोलन को खत्म करना मुश्किल हो गया, तो साल 2017 में मराठा आरक्षण के लिए एक आयोग गठित किया। सेवानिवृत न्यायाधीश एमजी गायकवाड की अध्यक्षता वाली 11 सदस्यीय आयोग ने सिफारिश की की “मराठाओं को सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्ग के तहत आरक्षण दिया जाना चाहिए।” साल 2018 में महाराष्ट्र विधानसभा ने मराठा समुदाय के लिए 16% आरक्षण का प्रस्ताव वाला विधायक पारित कर दिया और यह मराठा आरक्षण के आंदोलन की पहली जीत थी।

फिर यह मामला बॉम्बे हाई कोर्ट पहुंचा
जब महाराष्ट्र विधानसभा ने मराठा आरक्षण के प्रस्ताव को पारित कर दिया और मराठाओं के लिए 16% का आरक्षण का व्यवस्था कर दिया, तो कुछ लोग इसके खिलाफ इस मामले को बॉम्बे हाई कोर्ट लेकर गया। बॉम्बे हाई कोर्ट ने महाराष्ट्र सरकार की बात तो नहीं मानी, परंतु आरक्षण को बरकरार रखा। हाई कोर्ट ने 16% के बजाय शिक्षा में 12% और नौकरियों में 13% किए जाने की व्यवस्था की बात की।

सुप्रीम कोर्ट ने मराठा आरक्षण को रद्द कर दिया

जब बॉम्बे हाई कोर्ट ने भी मराठा आरक्षण को कुछ संक्षिप्त करके उसे बरकरार रखा, तो यह मामला फिर सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया। याचिकाकर्ता ने बॉम्बे हाई कोर्ट के फैसले को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट में इसके खिलाफ याचिका दायर की। साल 2020 में भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने इसके कार्यान्वयन पर रोक लगा दी और मामले को एक बड़ी पीठ के लिए भारत के मुख्य न्यायाधीश के पास भेज दिया।
साल 2021 में मराठा आरक्षण पर सुनवाई करते हुए भारत के सुप्रीम कोर्ट ने वर्ष 1992 में निर्धारित कुल आरक्षण पर 50% की सीमा का हवाला देते हुए मराठा आरक्षण को रद्द कर दिया।
आपको बता दें कि 1992 में इंदिरा साहनी बनाम भारत सरकार के फैसले में सर्वोच्च न्यायालय ने स्पष्ट रूप से कह दिया था कि आरक्षण की अधिकतम सीमा 50% तक ही होगी। बॉम्बे हाई कोर्ट के फैसला, जिसमें मराठा समुदाय को शिक्षा में 12% तथा नौकरियों में 13% आरक्षण देने की बात कही थी, इससे आरक्षण की कुल सीमा क्रमशः 64% तथा 65% तक हो जाता था। इसलिए सर्वोच्च न्यायालय ने बॉम्बे हाई कोर्ट के द्वारा मराठा आरक्षण पर दिए गए फैसले को असंवैधानिक बताते हुए मराठा आरक्षण को रद्द कर दिया। साथी सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि – महाराष्ट्र में राज्य सरकार द्वारा सीमा का उल्लंघन करने की कोई असाधारण परिस्थिति या असाधारण स्थिति नहीं थी।
इसके अलावा सर्वोच्च न्यायालय ने फैसला सुनाते हुए कहा कि – राज्य के पास किसी समुदाय को सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़े का दर्जा देने का कोई अधिकार नहीं है। केवल राष्ट्रपति ही सामाजिक और पिछड़े वर्गों की केंद्रीय सूची में बदलाव कर सकता है। राज्य केवल सुझाव दे सकते हैं।
सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि – मराठा समुदाय के लिए अलग से आरक्षण अनुच्छेद 14 और अनुच्छेद 21 का उल्लंघन करता है। इस प्रकार अंततः सर्वोच्च न्यायालय के द्वारा मराठा आरक्षण को रद्द कर दिया गया।

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