
केंद्र सरकार द्वारा लागू किए गए तीन नए आपराधिक कानूनों (भारतीय न्याय संहिता, भारतीय साक्ष्य अधिनियम और भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता) को लेकर तमिलनाडु के चेन्नई समेत अन्य शहरों में विवाद शुरू हो गया है। यह विवाद सिर्फ वहां के राजनेता ही नहीं कर रहे हैं बल्कि वहां के वकील भी इसमें शामिल है। इन वकीलों ने शुक्रवार को चेन्नई हाई कोर्ट के सामने इन कानून के खिलाफ जमकर विरोध प्रदर्शन किया और इसे तुरंत वापस लेने की मांग की। वकीलों का यह प्रदर्शन कानून का सही या गलत होने को लेकर नहीं है बल्कि उनकी भाषा को लेकर है। उन लोगों का कहना है कि यह तीनों कानून हिंदी भाषा में बनाया गया, इससे तमिल अस्मिता को ठेस पहुंचा है।आपको बता दें तमिलनाडु में हिंदी और गैर हिंदी भाषा के बीच विवाद बहुत पुराना है।
राज्य की मुख्य विपक्षी पार्टी ऑल इंडिया अन्ना द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (AIADMK) के अधिवक्ता प्रकोष्ठ के सचिव आई एस इंबादुरई के अगुवाई में वहां के वकीलों ने मद्रास हाई कोर्ट के सामने तीनों नए आपराधिक कानूनों के खिलाफ प्रदर्शन किया। मीडिया से बातचीत के दौरान इंबादुरई ने बताया की की यह तीनों कानून तमिल समाज के लोगों में भ्रम पैदा करेंगे इसलिए इन कानूनों को तुरंत वापस लिया जाना चाहिए। वही जब राज्य की सत्ताधारी पार्टी द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (DMK) के अधिवक्ता प्रकोष्ठ के सचिव एन आर एलांगो से इसके बारे में पूछा गया तो उन्होंने भी वकीलों के द्वारा विरोध प्रदर्शन का समर्थन किया। उन्होंने केंद्र सरकार पर आरोप लगाते हुए कहा कि यह तीनों आपराधिक कानून लोकतंत्र और संविधान विरोधी है, क्योंकि इनका नाम हिंदी में है जो संविधान के अनुच्छेद 348 के अनुसार लागू नहीं किया जा सकता है।
एलांगो ने मीडिया से बातचीत के दौरान कहा कि यह तीनों कानून असंवैधानिक है, इन्हें समाप्त किया जाना चाहिए और इन पर पुनर्विचार करना चाहिए। क्योंकि यह अपराध के आरोपी व्यक्तियों और अपराध के पीड़ितों के हित के खिलाफ हैं।
संविधान के अनुच्छेद 348 क्या कहता है–
अनुच्छेद 348, भारतीय संविधान 1950
(1) इस भाग के पूर्वगामी उपबंधों में किसी बात के होते हुए भी, जब तक संसद् विधि द्वारा अन्यथा उपबंध न करे,—
(क) सर्वोच्च न्यायालय और प्रत्येक उच्च न्यायालय में सभी कार्यवाहियां,
(ख) प्रामाणिक ग्रंथ-
(i) संसद के किसी सदन में या किसी राज्य के विधानमंडल के सदन या किसी सदन में प्रस्तुत किए जाने वाले सभी विधेयकों या प्रस्तावित किए जाने वाले संशोधनों पर,
(ii) संसद या किसी राज्य के विधानमंडल द्वारा पारित सभी अधिनियमों का तथा राष्ट्रपति या किसी राज्य के राज्यपाल या राजप्रमुख द्वारा प्रख्यापित सभी अध्यादेशों का, और
(iii) इस संविधान के अधीन या संसद या किसी राज्य के विधानमंडल द्वारा बनाए गए किसी कानून के अधीन जारी किए गए सभी आदेशों, नियमों, विनियमों और उपविधियों का,
अंग्रेजी भाषा में होगा।
(2) खंड (1) के उपखंड (क) में किसी बात के होते हुए भी, किसी राज्य का राज्यपाल या राजप्रमुख, राष्ट्रपति की पूर्व सहमति से, उस राज्य में मुख्य स्थान रखने वाले उच्च न्यायालय की कार्यवाहियों में हिंदी भाषा या राज्य के किसी राजकीय प्रयोजन के लिए प्रयुक्त किसी अन्य भाषा का प्रयोग प्राधिकृत कर सकेगा:
परन्तु इस खंड की कोई बात ऐसे उच्च न्यायालय द्वारा पारित या दिए गए किसी निर्णय, डिक्री या आदेश को लागू नहीं होगी।
(3) खंड (1) के उपखंड (ख) में किसी बात के होते हुए भी, जहां किसी राज्य के विधानमंडल ने उस विधानमंडल में पुरःस्थापित विधेयकों या उसके द्वारा पारित अधिनियमों में अथवा राज्य के राज्यपाल या राजप्रमुख द्वारा प्रख्यापित अध्यादेशों में अथवा उस उपखंड के पैरा (iii) में निर्दिष्ट किसी आदेश, नियम, विनियम या उपविधि में प्रयोग के लिए अंग्रेजी भाषा से भिन्न कोई भाषा विहित की है, वहां उस राज्य के राजपत्र में राज्य के राज्यपाल या राजप्रमुख के प्राधिकार से प्रकाशित उसका अंग्रेजी भाषा में अनुवाद इस अनुच्छेद के अधीन उसका अंग्रेजी भाषा में प्राधिकृत पाठ समझा जाएगा।
आपको बता दें कि 1 जुलाई 2024 से तीन नए कानून भारतीय न्याय संहिता, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता और भारतीय साक्ष्य अधिनियम प्रभाव में आए। इन तीनों कानूनों ने पूर्व के भारतीय दंड संहिता, दंड प्रक्रिया संहिता और भारतीय साक्ष्य अधिनियम 1872 की जगह ली।