दलित समाज में वही जातियां आगे बढ़ा जिन्होंने डॉ. अम्बेडकर को अपना आदर्श माना : चंद्रभान

In Dalit society, only those castes progressed who considered Dr. Ambedkar as their ideal: Chandrabhan
In Dalit society, only those castes progressed who considered Dr. Ambedkar as their ideal: Chandrabhan
    अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के आरक्षण में उप वर्गीकरण तथा क्रीमी लेयर को लेकर जब से सुप्रीम कोर्ट का फैसला आया है, तब से पूरे देश में इस बात को लेकर बहस छिड़ गया है कि कौन किसका हक मार रहा है!
• पासी समाज के पास चमारों से कहीं अधिक जमीनी हुआ करती थी! पासी समाज के यहां ब्राह्मण वर्ग कथा एवं शादियों में जाया करता था। 
• वाल्मीकि समाज, धोबी समाज और खटीक समाज के पास पैसा तो आया लेकिन यह शिक्षा की ओर अग्रसर नहीं हुए। 
• उस समय उत्तर प्रदेश में चमार( जाटव, दोहरे, रविदास) जाति के लोग, महाराष्ट्र में 'महार' तथा आंध्र प्रदेश एवं तेलंगाना में 'माला समाज' सबसे ज्यादा बहिष्कृत माने जाते थे। 
• विभिन्न प्रदेशों में जो लड़ाकू जातियां हैं अपने अधिकारों के प्रति सजग हैं उनको अलग कर दिया जाएगा। जब ऐसी जातियां अलग हो जाएगी तो निश्चित रूप से 10 ,20 साल में आरक्षण को समाप्त कर दिया जाएगा।
• अगर कोई दलित गधे की सवारी करता है तो तालियां बजाते हैं पर वही दलित घोड़े की सवारी करता है उस पर लाठियां बजाते हैं।
• 2014 से पहले दलितों के प्रति दया होती थी लेकिन 2014 के बाद दलितों के प्रति ईर्ष्या हो गई है। उनका कहना है कि समस्त दलित जातियों को समझ लेना चाहिए आरक्षण लागू के इतना समय हो गया है लेकिन आज भी कई विभागों में हमें नगण्य हैं
• एक दलित समाज का बच्चा इंजीनियरिंग पढ़ाई करने के बाद 20 हजार, 25 हजार की नौकरी ढूंढता है। वहीं जनरल समाज के बच्चे 1 लाख से लेकर के 5 लाख तक का पैकेज लेते हैं। 
• जिन लोगों को दलितों के पक्ष में काम करने का कोई मन नहीं है वही इस बंटवारे को सही कह रहा है। 
• परन्तु जब कॉलेज में प्लेसमेंट होता था तो उस कॉलेज के जनरल समाज के बहुत कम अंकों से पास हुए बच्चे अच्छे-अच्छे पैकेजों पर फैक्ट्री में चले जाते थे, लेकिन दलित समाज के बच्चे को सभी नकार देते थे। उसका मुख्य कारण था जाति कालम।
• अंत में मैं यही कहूंगा आप सभी लोग मिलकर पहले आरक्षण पूरा करवा लीजिए।

बीते दिन 21 अगस्त को देशभर में दलित समुदायों तथा बहुजन संगठनों ने भारत बंद बुलाया गया था। दलित कार्यकर्ताओं का कहना था कि हम अपनी आवाज सरकार को सुनना चाहते हैं। सरकार जो न्यायपालिका के माध्यम से हमारे हकों को छीनने का काम कर रही है, वह ना काबिले बर्दाश्त है। उन्होंने आगे कहा कि सुप्रीम कोर्ट का ये फैसला किसी को लाभ देने के उद्देश्य नहीं आया है, बल्कि दलित एकता को तोड़ने के लिए आया है। अदालत इस फैसले के जरिए भाई-भाई के बीच लड़वाने का काम कर रही है। दलित संगठनों ने केंद्र सरकार पर भी आरोप लगाते हुए उनको जिम्मेदार ठहराया। उन्होंने कहा कि केंद्र में बैठी भाजपा सरकार ना तो कोर्ट में सही से पैरवी किया है और अब जब फैसला आ गया तो उस पर अभी तक चुप है। केंद्र सरकार कोर्ट के फैसले पर चुपचाप बैठकर तमाशा देख रही है।
भारत बंद का असर बिहार, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, राजस्थान, महाराष्ट्र के साथ-साथ पूरे देश भर में देखा गया। लेकिन इन सब के बीच दलित समुदायों के कुछ जातियां कोर्ट के फैसले के समर्थन में आते दिखा। मुख्य रूप से वाल्मीकि समुदाय के लोग कोर्ट के इस फैसले के समर्थन में दिखे और कई जगह तो उन लोगों ने भारत बंद से दूरी भी बना ली थी। उनके हिसाब से सुप्रीम कोर्ट का फैसला सही है। उनका मानना है कि हमारा हिस्सा दलित समुदाय के अन्य जातियां ले रहा है।
इस प्रकार के तमाम सवालों के जवाब जानने के लिए हम जाने-माने दलित चिंतक चंद्रभान प्रसाद के उन बातों को गौर करेंगे जो उन्होंने अपने लेख में जिक्र किया है।

कौन है चंद्रभान प्रसाद ?

आपको बता दें कि चंद्रभान प्रसाद आज के समय में सबसे महत्वपूर्ण दलित विचारक और राजनीतिक टिप्पणीकार माना जाता है। चंद्रभान प्रसाद मूल रूप से उत्तर प्रदेश के आजमगढ़ जनपद से आते हैं। चंद्रभान प्रसाद CASI के दलित शोध कार्यक्रम पर एक शोध सहयोगी हैं और दलित भारतीय वाणिज्य एवं उद्योग मंडल (DICCI) के एक प्रमुख सलाहकार के रूप में कार्य करते हैं। वे भारत की स्वतंत्रता के पचास से अधिक वर्षों के बाद, राष्ट्रीय स्तर पर प्रसारित होने वाले भारतीय समाचार पत्र में नियमित स्थान पाने वाले पहले दलित हैं, जिन्होंने जल्दी ही राष्ट्रीय ध्यान और व्यापक पाठक वर्ग को आकर्षित किया। उनकी साप्ताहिक दलित डायरी 1999 से दिल्ली स्थित अंग्रेजी भाषा के समाचार पत्र द पायनियर की एक नियमित विशेषता रही है, जिसका नियमित रूप से कई अन्य प्रमुख भारतीय भाषाओं में अनुवाद किया जाता है। उनके लेखों और पुस्तकों का उपयोग दुनिया भर के विश्वविद्यालयों में दक्षिण एशिया के संकाय द्वारा जाति और भारतीय समाज के बारे में लंबे समय से चली आ रही धारणाओं पर सवाल उठाने के लिए किया जाता है। चंद्रभान प्रसाद ने दिल्ली में जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय से पढ़ाई की, जहाँ उन्होंने एमए और एम.फिल. की पढ़ाई पूरी की।

क्या सच में दलित समाज अपने भाइयों का हक छीन रहा है ?

सुप्रीम कोर्ट का आरक्षण बंटवारे एवं क्रीमी लेयर के संबंध में चंद्रभान प्रसाद कहते हैं कि दलित समाज में सबसे पहले पैसा बाल्मीकि समाज, धोबी समाज जैसे जातियों के बीच में आया। बाल्मीकि समाज बड़े-बड़े अस्पतालों एवं नगर पंचायत नगर पालिका एवं नगर निगम में साफ सफाई का कार्य शुरू किया तथा धोबी समाज ने गांव स्तर से लेकर शहर स्तर तक बड़े पैमाने पर कपड़े धोने का काम किया। बड़े-बड़े अस्पतालों में भी ऐसा किया गया। इन दोनों जातियों के साथ में ही खटीक समाज के पास भी पैसा आया क्योंकि सब्जी मंडी में खटीक समाज का अच्छा व्यापार रहा है। चंद्रभान प्रसाद जी का मानना है पासी समाज के पास चमारों से कहीं अधिक जमीनी हुआ करती थी। पासी समाज के यहां ब्राह्मण वर्ग कथा एवं शादियों में जाया करता था। वाल्मीकि समाज, धोबी समाज और खटीक समाज के पास पैसा तो आया लेकिन यह शिक्षा की ओर अग्रसर नहीं हुए। उस समय उत्तर प्रदेश में चमार( जाटव, दोहरे, रविदास) जाति के लोग, महाराष्ट्र में महार तथा आंध्र प्रदेश एवं तेलंगाना में ‘माला समाज’ सबसे ज्यादा बहिष्कृत माने जाते थे। धोबी एवं वाल्मीकि समाज भी उनके साथ रहना पसंद नहीं करता था। यहां तक नाई समाज भी बाल काटने से मना कर देता था। ऐसे में चमार, महार एवं माला समाज अन्य दलित जातियों से आगे कैसे निकल गया ये चिंतन करने वाली बात है, जबकि ये जातियां दलित समाज में सबसे ज्यादा बहिष्कृत मानी जाती थी।
इसके जवाब में चंद्रभान प्रसाद कहते हैं कि सबसे पहले इन जातियों ने डॉ भीमराव अंबेडकर को अपना आदर्श माना और शिक्षा पर सबसे ज्यादा ध्यान दिया। क्योंकि पहले जो बाबा साहब के कैलेंडर छपते थे उनमें सबसे ज्यादा चमारों के घर पर टंगे होते थे उनमें लिखा होता था – शिक्षित बनो, संगठित हो और संघर्ष करो। यानी शिक्षा का मंत्र उनके यहां सबसे पहले पहुंचा। वह बताते हैं कि बाबा साहेब डॉ. भीमराव अंबेडकर के विचारों के मतलब स्कूल जाओ, कॉलेज जाओ, विश्वविद्यालय जाओ। जब शिक्षा होगी तो आपका विकास होगा। इन जातियों में जो लोग अंबेडकरवादी हो गए। उन्होंने उन तमाम बुराइयों को छोड़ दिया जो समाज में व्याप्त था। जब उन्होंने उन गंदे कामों को छोड़ा तो उनके सामने रोजी-रोटी की भी समस्या उत्पन्न हो गई। इसके लिए उन लोगों ने दिल्ली, गाजियाबाद, मुंबई जैसे बड़े शहरों में जाकर बड़ी-बड़ी फैक्ट्री में काम किया। इन लोगों ने भले ही अपने गांव को छोड़ दिया लेकिन अपने बच्चों को भी पढ़ते रहे। जबकि धोबी समाज, वाल्मीकि समाज तथा खटीक समाज ने भी गांव छोड़ा और बड़े-बड़े शहरों की ओर पलायन किया लेकिन वह अपने पुराने पेशे से जुड़े रहे। उन्होंने अपने बच्चों को पढ़ाने में कोई दिलचस्पी नहीं रखी। इस कारण चमार, महार एवं माला समाज आगे बढ़ता गया जबकि धोबी समाज, वाल्मीकि समाज एवं खटीक समाज पिछड़ता चला गया।

यह फैसला पूरे दलित समाज के लिए हानिकारक है?

चंद्रभान प्रसाद जी का मानना है सुप्रीम कोर्ट का जो फैसला आया है उसके अनुसार विभिन्न प्रदेशों में जो लड़ाकू जातियां हैं अपने अधिकारों के प्रति सजग हैं, उनको अलग कर दिया जाएगा। जब ऐसी जातियां अलग हो जाएगी तो निश्चित रूप से 10 ,20 साल में आरक्षण को कतई समाप्त कर दिया जाएगा। वह कहते हैं कि जब इतने संघर्ष के बाद भी बहुत सी वैकेंसी निकलती हैं उनको ना भर कर not for suitable (NFS) लिख दिया जाता है और आगे चलकर उसे जनरल से भर लिया जाता है। आपने बहुत सी वैकेंसी में देखा होगा इसमें लिख दिया जाता है NFS मतलब not for suitable। जब समय-समय पर संघर्ष भी होता है तब भी हर विभाग में लाखों वैकेंसी खाली पड़ी हुई हैं, उसे नहीं भरी जा रही हैं। ऐसे में जब बंद हो जाएगा तो सरकारों को आरक्षण खत्म करने में और आसानी होगी।

चमार जाति से सभी सरकारें नफरत करती है !

चंद्रभान प्रसाद जी कहते हैं कि 2014 के बाद से केंद्रीय एवं राज्यों में जो भी सरकार बनी है वो सबसे ज्यादा चमार जातियों से नफरत करती हैं। क्योंकि यह वही जातियां हैं जिन्होंने इनकी सत्ता को नहीं माना और उन्हें हमेशा चुनौती दी है। हालांकि इन जातियों के लिए यह चुनौती नई नहीं है। इनके पूर्वजों ने भी समय-समय पर उनकी सत्ता को चुनौती है। चंद्रभान प्रसाद जी का मानना है जो जातियां बंटवारे को लेकर बहुत खुश हैं उन्हे यह मान लेना चाहिए कि अगर चमार समाज कमजोर होगा तो उनकी भी खुशी ज्यादा दिन तक टिकने वाला नहीं है। वह कहते हैं कि जिन लोगों को दलितों के पक्ष में काम करने का कोई मन नहीं है वही इस बंटवारे को सही कह रहा है। हालांकि इस बंटवारे को सही ठहराने वालों में ऐसे लोग भी शामिल है जो ये समझ नहीं पा रहे हैं कि अगर कोई दलित गधे की सवारी करता है तो तालियां बजाते हैं पर वही दलित घोड़े की सवारी करता है उस पर लाठियां बजाते हैं।

दलितों के साथ जाति के आधार पर भेदभाव होता है।

चंद्रभान प्रसाद कहते हैं कि 2014 से पहले दलितों के प्रति दया होती थी लेकिन 2014 के बाद दलितों के प्रति ईर्ष्या हो गई है। उनका कहना है कि समस्त दलित जातियों को समझ लेना चाहिए आरक्षण लागू के इतना समय हो गया है लेकिन आज भी कई विभागों में हमें नगण्य हैं और यदि है भी तो मात्र एक दो परसेंट। उनका मानना है कि सभी दलित जातियां सरकारों से संघर्ष कर आरक्षण कोटा पूरा कराए और निजी क्षेत्र में आरक्षण को लागू करवाए। क्योंकि एक दलित समाज का बच्चा इंजीनियरिंग पढ़ाई करने के बाद 20 हजार, 25 हजार की नौकरी ढूंढता है। वहीं जनरल समाज के बच्चे 1 लाख से लेकर के 5 लाख तक का पैकेज लेते हैं। जातिवाद पर चंद्रभान प्रसाद जी ने एक अच्छा उदाहरण दिया है कि चंडीगढ़ के एक अच्छे इंजीनियर कॉलेज में एक छात्र ने बहुत अच्छे अंकों से परीक्षा पास की थी। पर जब कॉलेज में प्लेसमेंट होता था तो उस कॉलेज के जनरल समाज के बहुत कम अंकों से पास हुए बच्चे अच्छे-अच्छे पैकेजों पर फैक्ट्री में चले जाते थे, लेकिन दलित समाज के बच्चे को सभी नकार देते थे। उसका मुख्य कारण था जाति कालम। दलित समाज का छात्र बहुत ही दुखी था। उन्हें कुछ समझ में नहीं आ रहा था उसके जूनियर कम अंकों से पास होते हुए भी अच्छे पैकेज पर जा रहे हैं लेकिन वह नहीं! तब उसने किसी दलित समाज के विद्वान व्यक्ति से पूछा इसका क्या कारण है? तब उन्होंने बताया कि तुम्हारा जाति कॉलम ही आड़े रहा है। अबकी बार जब भी प्लेसमेंट कॉलेज में हो तो अपने अपने आवेदन में जाति कलम हटा देना। जब कॉलेज में प्लेसमेंट के लिए कंपनी आई तो उन्होंने ऐसा ही किया और उसको सेलेक्ट कर लिया। इतना ही नहीं उस कॉलेज के इतिहास में सबसे हाईएस्ट पैकेज पर वह गया।

यह भेदभाव आज भी जारी है।

चंद्रभान प्रसाद जी कहते हैं कि आज भी हिंदुत्व काल में वोटो की राजनीति में आपको भले ही हिंदू मानते हैं लेकिन आज भी आप एक चाय का स्टॉल खोल लीजिए और अपनी जाति का बोर्ड आगे टांग दीजिए। हो सकता है कि होटल में लोग तोड़फोड़ करने आ जाएं। नहीं तो पूरे दिन में एक दो लोग ही आपके यहां चाय पीने आएंगे। आज भी दलित समाज से मंदिर जाने में मारपीट होती है, घोड़े पर दूल्हा बनकर चढ़ने में मारपीट होती है, कोई दलित अच्छी मूंछ रख ले तो उससे मारपीट होती है। चंद्रभान प्रसाद जी कहते हैं कि अंत में मैं यही कहूंगा आप सभी लोग मिलकर पहले आरक्षण पूरा करवा लीजिए। नहीं तो आप कितने ताकतवर हो यह आपको भी पता है। हकीकत यह है कि इस देश में आपकी कोई औकात नहीं है। जब देश के राष्ट्रपति को भी मंदिर में न घुसने दिया गया हो ऐसे समाज से क्या ही उम्मीद की जा सकती है। रही बात सुप्रीम कोर्ट की तो सुप्रीम कोर्ट से आप क्या उम्मीद कर सकते हैं जहां सिर्फ एक जाति का ही बोलबाला हो।

Source: Social Media

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