बाल गंगाधर तिलक पुण्यतिथि : आधुनिक भारत में तिलक के विचार कितने प्रासंगिक है?

Bal Gangadhar Tilak Death Anniversary: ​​How relevant are Tilak’s ideas in modern India?

आज देश के कई हिस्सों में बाल गंगाधर तिलक की पुण्यतिथि मनाई जा रही है। क्योंकि आज ही के दिन यानी 1 अगस्त 1920 को उनकी मृत्यु हो गई थी। बाल गंगाधर तिलक को भारतीय समाज में समाज सुधारक के रूप में याद किया जाता है। उन्हें स्वतंत्रता सेनानी के रूप में भी याद किया जाता है। आजादी के संघर्षों के समय उनके द्वारा दिया गया नारा “स्वराज हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है, हम इसे लेकर रहेंगे” काफी लोकप्रिय नारा हुआ। लेकिन उनका स्वराज क्या वाकई में पूरे देश के नागरिकों के स्वराज के रूप में परिभाषित था या कुछ लोगों या समुदाय तक ही सीमित था? आज के इस आर्टिकल में इसी के बारे में चर्चा करेंगे।
लोकमान्य के उपनाम से पुकारे जाने वाले बाल गंगाधर तिलक का जन्म 13 जुलाई 1856 को महाराष्ट्र के रत्नागिरी में एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था। तिलक का पहचान एक उग्र हिंदुत्व की छवि वाले नेता के रूप में होता रहा है। उन्होंने अंग्रेजी सरकार के शिक्षा नीति का जमकर विरोध किया। उसका उनका मानना था कि भारतीय लोगों को भारतीय संस्कृति के अनुरूप ही शिक्षा दिया जाना चाहिए। तिलक शिक्षा व्यवस्था में संस्कृत और हिंदू धर्म को लेकर काफी ज्यादा उत्सुक्त रहते थे।
बाल गंगाधर तिलक के द्वारा ही 1893 में गणेश पूजा की शुरुआत की गई। उन्होंने मराठी भाषा में केसरी तथा अंग्रेजी भाषा में द मराठा जैसे अखबारों का प्रकाशन किया। तिलक अपनी बात इन्हीं पत्रिकाओं के माध्यम से समाज के बीच रखते थे। चाहे वह राजनीतिक बातें हो, धार्मिक बातें हो या सामाजिक मुद्दों पर आधारित बातें हो।
इस दौर में देश का एक और महान विभूति समाज को जागरूक करने में पूरी जिंदगी लगा दी। हम बात कर रहे हैं ज्योतिबा फुले के बारे में। लेकिन ज्योतिबा फुले (1827–1897) के विचारधारा और बाल गंगाधर तिलक के विचारधारा जरा सा भी मिल नहीं खाता था। तिलक जहां प्राचीन परंपरा को अपना राष्ट्र का गौरव बताते थे तो वही ज्योतिबा फुले शिक्षा से लेकर सामाजिक जीवन तक आधुनिक व्यवस्था को लागू करना चाहते थे।
भारतीय इतिहास में यह दो ऐसी शख्सियत रहे हैं जिनका बहुत ही महत्वपूर्ण स्थान दिया जाता है। ज्योतिबा फुले का पूरा नाम ज्योति राव गोविंद राव फुले था। यह एक भारतीय विचारक, समाज सेवी, लेखक, दार्शनिक तथा क्रांतिकारी समाज सुधारक थे। लोग इन्हें प्यार से महात्मा फुले या ज्योतिबा फुले के नाम से पुकारते हैं। इन्होंने महिलाओं और दलित समाज (जिन्हें उसे समय अछूत समाज कहा जाता था) के लिए अनेकों कार्य किया। यह भारतीय समाज में प्रचलित जाति के आधार पर भेदभाव के विरुद्ध थे। साथ ही इन्होंने महिलाओं के उत्थान के लिए काफी काम किया। ज्योतिबा फुले का मानना था कि – समाज के सभी वर्ग चाहे कोई निकली कहीं जाने वाली जाति के हो या कोई महिला हो, सभी को शिक्षा ग्रहण करने का अधिकार है। उन्हें भी समान शिक्षा प्रदान किया जाना चाहिए। स्त्रियों की तरह इस दशा सुधारने और उसकी शिक्षा के लिए ज्योतिबा फुले ने 1848 में लड़कियों के लिए स्कूल खोला। गरीब और निर्बल वर्ग को न्याय दिलाने के लिए 1873 में उन्होंने सत्यशोधक समाज की स्थापना की।
वहीं बाल गंगाधर तिलक को भारतीय राष्ट्रवादी, स्वतंत्रता सेनानी माना जाता है। बाल गंगाधर तिलक को स्वतंत्रता सेनानी के अलावा एक शिक्षक तथा एक वकील के रूप में भी याद किया जाता है। भारत की स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान उन्हें कई बार जेल भी जाना पड़ा।
लेकिन कई ऐसे मुद्दे पर बाल गंगाधर तिलक और ज्योतिबा फुले के बीच गहरा मतभेद था। तो आइए हम लोग देखते हैं कि किन-किन मुद्दों पर दोनों का मतभेद था?

बाल गंगाधर तिलक बनाम ज्योतिवा फुले

जाति व्यवस्था के मुद्दे पर

ज्योतिबा फुले जाति व्यवस्था को समाज का सबसे बड़ा कलंक मानते थे पहले जाति को असमानता गैर बराबरी भेदभाव की बुनियाद मानते और इसे खत्म करने की बात करते थे इसके लिए इन्होंने कई सारे कार्यक्रम भी चलाएं सत्यशोधक समाज की स्थापना उसी का एक कड़ी है लेकिन बाल गंगाधर तिलक ठीक इसके विपरीत जाति व्यवस्था को हिंदू धर्म का दल मानते थे तिलक का मानना था कि “जाति पर भारतीय समाज की बुनियाद टिकी है, जाति की समाप्ति का अर्थ है, भारतीय समाज की बुनियाद को तोड़ देना, साथ ही राष्ट्र और राष्ट्रीयता को तोड़ना है।” तिलक ने यह बात उन्होंने अपने अखबार मराठा के पृष्ठ संख्या–1 में लिखा जो 24 अगस्त 1884 को संपादित किया गया था। बाल गंगाधर तिलक ज्योतिबा फुले को देशद्रोही कहते थे। क्योंकि फुले ने जाति व्यवस्था को तोड़ने की बात कही थी।

सबके लिए अनिवार्य शिक्षा की मुद्दे पर

ज्योतिबा फुले समाज के सभी वर्गों को शिक्षा प्रदान करने की वकालत करते थे। साथ ही उन्होंने महिलाओं को भी शिक्षा दिलाने का समर्थन किया करते थे। इसके लिए उन्होंने काफी काम किया। लड़कियों और महिलाओं को शिक्षा दिलाने के लिए 1848 में लड़कियों के लिए स्कूल खोला जो लड़कियों के लिए देश का पहला स्कूल था। जब लड़कियों को पढ़ने के लिए कोई शिक्षक तैयार नहीं हुआ तो उन्होंने कुछ दिन स्वयं यह काम किया, फिर अपनी पत्नी सावित्रीबाई फुले को इस काम के लिए तैयार किया।
वहीँ बाल गंगाधर तिलक सबके लिए अनिवार्य शिक्षा के सख्त खिलाफ थे। बाल गंगाधर तिलक ने प्राथमिक शिक्षा को सबके लिए अनिवार्य बनाने का ज्योतिबा फुले के प्रस्ताव का कड़ा विरोध किया। इस संदर्भ में तिलक ने कहा कि – शूद्र, अतिशूद्र (ओबीसी / एससी एसटी ) समाज के बच्चों को इतिहास, भूगोल और गणित पढ़ने की क्या जरूरत है, उन्हें अपने परंपरागत जातीय पेशे को अपनाना चाहिए।आधुनिक शिक्षा उच्च जातियों के लिए ही उचित है। यह बात उन्होंने अपने अखबार मराठा के जरिए कहा जो 1881 में प्रकाशित हुई थी

निकले तबके का उत्थान के लिए सरकारी सहायता के मुद्दे पर

ज्योतिबा फुले सभी वर्गों को शिक्षा दिलाने के पक्ष में बात करते थे। उनका मानना था कि जो लोग अपने बच्चों को शिक्षा नहीं दिला पाते हैं या जिन लोगों की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं है, उनके बच्चों को शिक्षा दिलाने के लिए सरकार को आगे जाकर सहायता करनी चाहिए। उन लोगों के पढ़ाई का खर्च सरकार निर्वहन करें या सरकार उन बच्चों को छात्रवृत्ति दें।
वही बाल गंगाधर तिलक इसके खिलाफ थे तिलक का कहना था कि–सार्वजनिक धन से नगरपालिका को सबको शिक्षा देने का कोई अधिकार नहीं है, क्योंकि यह धन करदाताओं का है, और शूद्र-अतिशूद्र कर नहीं देते हैं। उन्होंने इस बात को भी अपने अखबार मराठा के जरिए ही रखा जो 1881 में पृष्ठ संख्या–1 पर प्रकाशित हुई थी।

स्कूलों में सभी वर्गों के प्रवेश के मुद्दे पर

ज्योतिबा फुले समाज के सभी वर्गों को शिक्षा दिलाना चाहते थे। इसके लिए वह सभी वर्गों के बच्चों को स्कूल में प्रवेश दिलाने के लिए प्रयास करते रहते थे। उनका मानना था कि जब तक सभी समुदाय को शिक्षित नहीं किया जाएगा तब तक देश में विकास होने की कोई संभावना नहीं है।
वही बाल गंगाधर तिलक मेहर और मातंग जैसे अछूत जातियां को स्कूल में प्रवेश का सख्त विरोध किया इस विषय पर उनका कहना था कि – केवल उन जातियों का स्कूलों में प्रवेश होना चाहिए, जिन्हें प्रकृति ने इस लायक बनाया है यानी उच्च जातियां।

महिलाओं के शिक्षा के मुद्दे पर

ज्योतिबा फुले महिलाओं को शिक्षित करने पर अधिक जोर देते थे। फूले पुरुषों की भांति महिलाओं को भी आधुनिक शिक्षा दिलाने के पक्षधर थे। ज्योतिबा फुले का मानना था कि महिलाओं की स्थिति में सुधार तब तक नहीं होगा जब तक महिलाएं शिक्षित नहीं होगी। महिलाओं को आधुनिक शिक्षा दिलाया बगैर महिला कल्याण हो ही नहीं सकता। और जब तक महिलाओं की स्थिति में सुधार नहीं होगा तब तक देश का भी कल्याण नहीं होगा।
वही बाल गंगाधर तिलक ने महिला शिक्षा का पूरी क्षमता के साथ विरोध किया उन्होंने 1881 से 1920 के बीच जगह-जगह जाकर और कार्यक्रम करके महिला शिक्षा का पुरजोर विरोध किया था महिला शिक्षा के विरोध में बाल गंगाधर तिलक लिखते हैं कि– “महिलाएं कमजोर होती है और संतति को बढ़ाना ही उसका काम होता है। इसलिए उसको शिक्षित करने से उनको पीड़ा होगी। क्योंकि आधुनिक शिक्षा को समझना उनके शक्ति से बाहर की बात है।” तिलक ने यह बात अपने अखबार मराठा में 31 अगस्त 1884 में प्रकाशित किया था।

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