बिहार को मिला पहली ट्रांसजेंडर दरोगा

First Transgender Daroga in Bihar
First Transgender Daroga in Bihar

बिहार में दारोगा पद की बहाली के लिए कुल 1275 अभ्यर्थी सफल हुए। लेकिन इन सब के बीच जो सबसे बड़ी खबर निकलकर सामने आई वह यह है कि इन सफल अभ्यर्थियों में तीन अभ्यर्थी ऐसे हैं जो ट्रांसजेंडर है। यानी बिहार में पहली बार कोई ट्रांसजेंडर पुलिस सेवा में नियुक्त होने जा रहे हैं। पटना हाई कोर्ट के आदेश के बाद बिहार सरकार ने ट्रांसजेंडर को बिहार पुलिस सेवा में भर्ती की प्रक्रिया को शुरू कर दिया था। इसी प्रक्रिया के तहत बिहार को पहली बार एक नहीं बल्कि तीन ट्रांसजेंडर दरोगा मिला। इसके साथ ही बिहार देश का पहला ऐसा राज्य बन गया जहां के पुलिस सेवा में तीन ट्रांसजेंडर की बहाली हुई। हालांकि बिहार से पहले केरल ने अपने यहां सिपाही भर्ती में ट्रांसजेंडर को बहाल करना शुरू कर दिया था, लेकिन वहां अब तक केवल एक ट्रांसजेंडर सिपाही बना है।
बिहार दरोगा में सफल हुए तीन ट्रांसजेंडर में एक मानवी मधु कश्यप भी है। मानवी एक वूमेन ट्रांसजेंडर है। आज के इस आर्टिकल में मानवी मधु कश्यप के बारे में विस्तार से जानेंगे कि उसका यह सफर कितना कठिन रहा।


मानवी मधु कश्यप के बारे में
मानवी मधु कश्यप बांका जिले के पंजवारा की रहने वाली है। वह अपने चार भाई बहनों में सबसे बड़ी है। मानवी बहुत छोटी ही थी कि उनके पिता इस दुनिया को छोड़ दिए। यानी बचपन में ही उनके सिर से पिता का साया उठ गया। मानवी की प्रारंभिक शिक्षा एसएस संपोषित हाई स्कूल पंजवारा से हुई है। इंटरमीडिएट की पढ़ाई सीएनडी कॉलेज से और तिलकामांझी यूनिवर्सिटी से राजनीतिक शास्त्र में उन्होंने ग्रेजुएशन की पढ़ाई पूरी की।


आसान नहीं था सफर सामाजिक बहिष्कार का भी सामना करना पड़ा:
मानवी बताती है कि जब वह कक्षा 9 में थी तब उन्हें पता चला कि वह सामान्य लड़के लड़कियों की तरह नहीं है। इसके बाद तो कुंठित समाज ने धीरे-धीरे उनसे दूरी बना लिया। वह बताती है कि जो बच्चे कल तक मेरे साथ खेलते कूदते थे, साथ-साथ पढ़ाई करते थे, अचानक सब ने मुझ से दूरी बना लिया। समाज के लोग भी मेरे साथ इस तरह व्यवहार करते थे कि मानो मैं इस दुनिया का हूं ही नहीं। वह बताती है कि समाज के डर से खुद की पहचान छुपाने के लिए अपने चेहरे को दुपट्टे से ढक कर रहती थी। जब उनको अपने गांव में रहना मुश्किल हो गया तो वह पटना आ गई और यहीं से उन्होंने दरोगा की तैयारी शुरू कर दी। समाज की कुंठा और बेरुखी का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि उनकी मां उनसे मिलने के लिए छिपकर पटना आती थी ताकि गांव वाले को यह पता ना चल सके कि वह अपनी बच्ची से मिलने आई है। मानवी कहती है कि मैं भी 9 साल से अपना गांव नहीं गई हूँ। मानवी का मानना है कि यह रिजल्ट उन्हें सिर्फ नौकरी ही नहीं देगी बल्कि उसके साथ-साथ वह सम्मान भी देगी जो कुंठित समाज आज तक उसको नहीं दे रही थी। अब वह इस बात से आश्वस्त है कि अब बिना किसी हिचक के अपने गांव जा सकूंगी और अब मां से छिपकर नहीं बल्कि सबके सामने मिल सकूंगी।

पहले भी प्रयास कर चुकी थी
हालांकि ऐसा नहीं है कि मानवी को पहली बार में ही सफलता मिल गई। वर्ष 2022 में मद्य निषेध विभाग में सिपाही के लिए उन्होंने लिखित परीक्षा तो निकाल ली लेकिन शारीरिक दक्षता (फिजिकल) के दौड़ में वह 11 सेकंड से चूक गई थी। उसे दौरान उसकी सर्जरी हुआ था जिसके कारण 6 महीने बेड रेस्ट पर थी।

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