
पंचायत (अनुसूचित क्षेत्रों तक विस्तार) अधिनियम, 1996 (पेसा) भारत में एक ऐतिहासिक कानून है जिसका उद्देश्य 73वें संविधान संशोधन अधिनियम के प्रावधानों को भारतीय संविधान की पांचवीं अनुसूची में सूचीबद्ध आदिवासी क्षेत्रों तक विस्तारित करना है। पेसा इन क्षेत्रों में ग्राम सभाओं (ग्राम परिषदों) को स्व-शासन और अपने प्राकृतिक संसाधनों का प्रबंधन करने का अधिकार देता है, जिससे यह सुनिश्चित होता है कि स्थानीय आदिवासी समुदायों को उनके आवासों के प्रशासन और विकास में महत्वपूर्ण भूमिका मिले।
पेसा की मुख्य विशेषताएं:
- ग्राम सभाओं का सशक्तिकरण:
- ग्राम सभाओं को सामाजिक और आर्थिक विकास के लिए योजनाओं, कार्यक्रमों और परियोजनाओं को मंजूरी देने का अधिकार दिया गया है।
- वे विभिन्न कार्यक्रमों के लिए लाभार्थियों की पहचान कर सकते हैं और धन के उपयोग के प्रमाण पत्र जारी कर सकते हैं।
- संसाधनों का प्रबंधन:
- पेसा आदिवासी समुदायों के अपने जल स्रोतों, लघु वन उपज और अन्य प्राकृतिक संसाधनों के प्रबंधन और सुरक्षा के अधिकारों को मान्यता देता है।
- यह ग्राम सभाओं को लघु जल निकायों को विनियमित और नियंत्रित करने और भूमि अभिलेखों का प्रबंधन करने का अधिकार देता है।
- सांस्कृतिक संरक्षण:
- अधिनियम में जनजातीय रीति-रिवाजों, परंपराओं और सांस्कृतिक पहचान के संरक्षण का प्रावधान है।
- संघर्ष समाधान:
- ग्राम सभाओं को पारंपरिक प्रथाओं के अनुसार विवादों को हल करने का अधिकार है।
भारत में वन संरक्षण पर पेसा का प्रभाव
सकारात्मक प्रभाव
- सामुदायिक भागीदारी:
- सशक्तिकरण (Empowerment):— ग्राम सभाओं को सशक्त बनाकर, पेसा ने वन संरक्षण प्रयासों में समुदाय की अधिक भागीदारी को सुगम बनाया है। जनजातीय समुदाय, स्थानीय पारिस्थितिकी तंत्र की अपनी गहरी समझ के साथ, वन संसाधनों के सतत उपयोग और संरक्षण के बारे में सूचित निर्णय ले सकते हैं।
- निर्णय लेना (Decision-Making):— स्थानीय निर्णय लेने से यह सुनिश्चित होता है कि संरक्षण रणनीतियाँ अधिक प्रासंगिक और प्रभावी हों, पारंपरिक पारिस्थितिक ज्ञान का लाभ उठाते हुए।
- सतत प्रबंधन:
- संसाधन अधिकार (Resource Rights):— अधिनियम जनजातीय समुदायों के लघु वन उपज तक पहुँचने और उसका उपयोग करने के अधिकारों को मान्यता देकर वनों के सतत प्रबंधन को बढ़ावा देता है। यह सुनिश्चित करता है कि वन प्रबंधन प्रथाएँ स्थानीय समुदायों की आजीविका और आवश्यकताओं के अनुरूप हों।
- पारिस्थितिक संतुलन (Ecological Balance):— सतत प्रथाएँ पारिस्थितिक संतुलन और वन पारिस्थितिकी तंत्र के दीर्घकालिक स्वास्थ्य को बनाए रखने में मदद करती हैं।
- जैव विविधता का संरक्षण:
- पारंपरिक ज्ञान (Traditional Knowledge):— संरक्षण प्रयासों में स्थानीय समुदायों को शामिल करने से जैव विविधता की रक्षा करने में मदद मिलती है। आदिवासी समुदायों के पास अक्सर स्थानीय वनस्पतियों और जीवों के बारे में व्यापक ज्ञान होता है, जो जैव विविधता संरक्षण के लिए महत्वपूर्ण है।
- संरक्षण पहल (Conservation Initiatives):— पारंपरिक प्रथाएँ और ज्ञान प्रभावी संरक्षण पहलों में योगदान करते हैं, जिससे लुप्तप्राय प्रजातियों और आवासों की रक्षा होती है।
चुनौतियाँ और आलोचनाएँ
- कार्यान्वयन के मुद्दे:
- अधूरा कार्यान्वयन (Incomplete Implementation):— इसके संभावित लाभों के बावजूद, PESA के कार्यान्वयन में कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा है। कई क्षेत्रों में, अधिनियम के प्रावधानों को पूरी तरह से लागू नहीं किया गया है, और ग्राम सभाओं के पास वन संसाधनों को प्रभावी ढंग से प्रबंधित करने के लिए आवश्यक अधिकार और संसाधनों की कमी है।
- संसाधन आवंटन (Resource Allocation):— ग्राम सभाओं को अक्सर संसाधनों का अपर्याप्त आवंटन होता है, जिससे संरक्षण परियोजनाओं को निष्पादित करने की उनकी क्षमता सीमित हो जाती है।
- अन्य कानूनों के साथ टकराव:
- कानूनी विवाद (Legal Disputes):— ऐसे कई उदाहरण हैं जहाँ PESA के प्रावधान वन संरक्षण से संबंधित अन्य कानूनों और नीतियों के साथ टकराव में रहे हैं। इससे भ्रम और कानूनी विवाद पैदा हो सकते हैं, जिससे संरक्षण प्रयासों को नुकसान पहुँच सकता है।
- नीति संरेखण (Policy Alignment):— संघर्षों से बचने और सुसंगत शासन सुनिश्चित करने के लिए PESA को अन्य वन और पर्यावरण कानूनों के साथ संरेखित करना आवश्यक है।
- सीमित जागरूकता:
- जागरूकता अंतराल (Awareness Gaps):— प्रभावी कार्यान्वयन में एक महत्वपूर्ण बाधा PESA के तहत अपने अधिकारों के बारे में आदिवासी समुदायों के बीच जागरूकता की कमी है। यह वन संरक्षण में प्रभावी रूप से भाग लेने की उनकी क्षमता को बाधित करता है।
- क्षमता निर्माण (Capacity Building):— PESA के सफल कार्यान्वयन के लिए आदिवासी समुदायों की जागरूकता बढ़ाने और उनकी क्षमता का निर्माण करने के प्रयास महत्वपूर्ण हैं।
PESA आदिवासी समुदायों को सशक्त बनाकर और टिकाऊ प्रबंधन प्रथाओं को बढ़ावा देकर भारत में वन संरक्षण को बढ़ाने की महत्वपूर्ण क्षमता रखता है। हालाँकि, इस क्षमता को साकार करने के लिए कार्यान्वयन चुनौतियों का समाधान करना, PESA को अन्य प्रासंगिक कानूनों के साथ सामंजस्य स्थापित करना और आदिवासी समुदायों के बीच उनके अधिकारों और जिम्मेदारियों के बारे में जागरूकता बढ़ाना आवश्यक है। सरकार, गैर-सरकारी संगठनों और स्थानीय नेताओं द्वारा एक ठोस प्रयास यह सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक है कि PESA के लाभों को पूरी तरह से महसूस किया जाए, जिससे अधिक प्रभावी और टिकाऊ वन संरक्षण प्रथाएँ बन सकें।