
भारत का संघीय ढांचा संघ और राज्य सरकारों के बीच शक्ति संतुलन के लिए बनाया गया है, जिससे सहकारी संघवाद सुनिश्चित होता है। हालाँकि, हाल ही में केंद्र सरकार की कर नीतियों ने राज्यों को वित्तीय हस्तांतरण को काफी प्रभावित किया है, जिससे यह संतुलन कमज़ोर हुआ है। आइए जानें कि केंद्र सरकार की ये नीतियाँ राज्यों की वित्तीय स्वायत्तता को कैसे प्रभावित कर रही हैं, और कैसे सहकारी संघवाद से हटकर वित्तीय संसाधनों के केंद्रीकरण की ओर बढ़ रही हैं।
चौदहवाँ और पंद्रहवाँ वित्त आयोग
चौदहवें वित्त आयोग (FFC) ने राजकोषीय संघवाद को बढ़ाने के इरादे से राज्यों को संघ के कर राजस्व का 42% हस्तांतरित करने की सिफारिश की। हालाँकि, 2015-16 से, वास्तविक वित्तीय हस्तांतरण में कमी आई है। पंद्रहवाँ वित्त आयोग (FFC), जिसने जम्मू और कश्मीर और लद्दाख को छोड़कर 41% के हस्तांतरण की सिफारिश की, राज्यों को कम वित्तीय सहायता की इस प्रवृत्ति को जारी रखता है।
सकल बनाम शुद्ध कर राजस्व (Gross vs. Net Tax Revenue)
वित्तीय हस्तांतरण का एक महत्वपूर्ण पहलू सकल और शुद्ध कर राजस्व के बीच का अंतर है। सकल कर राजस्व (Gross tax revenue) में केंद्र सरकार द्वारा एकत्र किए गए सभी कर शामिल होते हैं। हालाँकि, शुद्ध कर राजस्व (Net tax revenue) वह होता है जो उपकर (Cess) और अधिभार (surcharge), कर प्रशासन व्यय और केंद्र शासित प्रदेशों से राजस्व जैसे घटकों को घटाने के बाद बचता है। ये कटौती राज्यों को हस्तांतरण के लिए उपलब्ध राशि को काफी कम कर देती है।
उपकर और अधिभार संग्रह में वृद्धि (Rising Cess and Surcharge Collections)
उपकर और अधिभार संग्रह में काफी वृद्धि देखी गई है, जो 2015-16 में सकल कर राजस्व के 5.9% से बढ़कर 2023-24 में 10.8% हो गया है। इन निधियों का उपयोग मुख्य रूप से केंद्र सरकार की योजनाओं को वित्तपोषित करने के लिए किया जाता है, अक्सर राज्यों के हिस्से की कीमत पर। इस वृद्धि ने केंद्र सरकार को अधिक विवेकाधीन निधि प्रदान की है, जिससे राज्यों के बीच संसाधनों का समान वितरण प्रभावित हुआ है।
राज्य स्वायत्तता पर प्रभाव (Impact on State Autonomy)
सार्वजनिक व्यय के केंद्रीकरण से केंद्र सरकार के लिए महत्वपूर्ण विवेकाधीन निधियाँ प्राप्त हुई हैं, जो बदले में राज्यों की स्वायत्तता को प्रभावित करती हैं। ‘केंद्र प्रायोजित योजनाएं’ (CSS) और ‘केंद्रीय क्षेत्र योजनाएं’ (CSec योजनाएं) राज्य की प्राथमिकताओं और वित्तीय प्रतिबद्धताओं को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। केंद्र सरकार द्वारा वित्तपोषित इन योजनाओं में अक्सर राज्यों को वित्तीय योगदान देने की आवश्यकता होती है, जिससे उनके बजट पर दबाव पड़ता है और सार्वजनिक व्यय में उनकी स्वायत्तता कम हो जाती है।
अंतर-राज्यीय असमानता (Inter-State Inequality)
CSS और CSec योजनाओं के प्रभुत्व ने अंतर-राज्यीय असमानता को और बढ़ा दिया है। बेहतर प्रशासनिक क्षमता और वित्तीय संसाधनों वाले राज्य इन योजनाओं का लाभ उठाने में अधिक सक्षम हैं, जबकि कम संपन्न राज्य इन योजनाओं को बनाए रखने के लिए संघर्ष करते हैं। यह असंतुलन पूरे देश में समान विकास के सिद्धांत को कमजोर करता है।
गैर-सांविधिक वित्तीय हस्तांतरण (Non-Statutory Financial Transfers)
CSS और CSec योजनाओं के माध्यम से गैर-सांविधिक वित्तीय हस्तांतरण केंद्र सरकार से वित्तीय अनुदान का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। ये हस्तांतरण राज्यों की स्वायत्तता को और कम करते हैं, क्योंकि वे केंद्र सरकार द्वारा निर्धारित विशिष्ट शर्तों और दिशानिर्देशों के साथ आते हैं। वित्तीय संसाधनों का यह केंद्रीकरण सार्वजनिक व्यय के मामलों में केंद्र सरकार के बढ़ते प्रभुत्व को दर्शाता है।
सहकारी संघवाद खतरे में (Cooperative Federalism at Risk)
राज्यों को वित्तीय हस्तांतरण में कमी और वित्तीय संसाधनों का केंद्रीकरण ‘सहकारी संघवाद के सार’ (essence of cooperative federalism) को चुनौती देता है। राज्य तेजी से खुद को धन के लिए केंद्र सरकार पर निर्भर पाते हैं, जिससे स्थानीय जरूरतों और प्राथमिकताओं को स्वतंत्र रूप से संबोधित करने की उनकी क्षमता सीमित हो जाती है। यह निर्भरता शक्ति असंतुलन को जन्म दे सकती है, जहां केंद्र सरकार का राज्य के मामलों पर अधिक नियंत्रण होता है।
भविष्य के वित्त आयोग की सिफारिशें (Future Finance Commission Recommendations)
ये हालात भविष्य के वित्त आयोग की सिफारिशों में राज्यों की हिस्सेदारी को और कम करने के संभावित तर्कों की ओर इशारा करता है। यह संभावना भारत में सहकारी संघवाद के भविष्य के बारे में चिंता पैदा करती है। यदि वित्तीय संसाधनों को केंद्रीकृत करने की प्रवृत्ति जारी रहती है, तो राज्य अपने विकासात्मक लक्ष्यों को पूरा करने के लिए संघर्ष कर सकते हैं, जिससे क्षेत्रीय असमानताएं बढ़ेंगी और देश के संघीय ढांचे को कमजोर किया जा सकेगा।
निष्कर्ष
केंद्र सरकार की कर नीतियों ने राज्यों को वित्तीय हस्तांतरण को महत्वपूर्ण रूप से प्रभावित किया है, जिससे सहकारी संघवाद के सिद्धांतों को चुनौती मिली है। उपकर और अधिभार (Cess and surcharge) संग्रह में वृद्धि, केंद्र प्रायोजित और केंद्रीय क्षेत्र की योजनाओं के प्रभुत्व के साथ, राज्यों की स्वायत्तता को कम कर दिया है और अंतर-राज्य असमानता को बढ़ा दिया है। केंद्र और राज्य सरकारों के बीच शक्ति संतुलन बनाए रखने के लिए इन नीतियों पर पुनर्विचार करना और वित्तीय संसाधनों का समान वितरण सुनिश्चित करना महत्वपूर्ण है। भारत के संघीय ढांचे का भविष्य सहकारी संघवाद को बनाए रखने पर निर्भर करता है, जहाँ केंद्र और राज्य दोनों राष्ट्र के विकास लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए मिलकर काम करते हैं।