
उत्तर प्रदेश के हाथरस में एक धार्मिक सत्संग के दौरान भगदड़ मच गई, जिससे वहां मौजूद कई श्रद्धालुओं की मौत हो गई और कई घायल हो गए। उत्तर प्रदेश पुलिस के आगरा जोन के एडीजी कार्यालय ने 120 से अधिक श्रद्धालुओं की मृत्यु की पुष्टि की है। हालांकि कार्यालय ने बताया कि चूंकि शवों को कई जगह ले जाया गया है, इसलिए मरने वालों की संख्या में बढ़ोतरी भी हो सकती है। स्थानीय मीडिया से बातचीत में आगरा के सीएमओ ने बताया कि चूंकि हाथरस में शवों को पोस्टमार्टम के लिए जगह नहीं बची है इसलिए कई बॉडी आगरा मोर्चरी में लाए गए।
स्थानीय लोगों का कहना है कि इस घटना में मरने वालों की संख्या में अभी और बढ़ोतरी हो सकती है। क्योंकि हालात पूरी तरह से अनियंत्रित हो गया था। ऐसे में सवाल उठता है कि इस प्रकार के घटनाओं का जिम्मेदार कौन है स्थानीय प्रशासन सत्संग आयोजन करने वाले बाबा या जनता स्वयं ?
क्योंकि यह कोई पहली घटना नहीं है। मंदिरों और धार्मिक आयोजनों में ऐसा बार-बार हो चुका है और सैकड़ो लोग भगदड़ में अपनी जान गंवा चुके हैं। भक्ति में लीन अक्सर श्रद्धालु एक अनियंत्रित भीड़ में तब्दील हो जाता है और फिर जो भी उनके रास्ते में आता है उसे नष्ट कर देता है। कुंभ मेला, बागेश्वर धाम, वैष्णो देवी, सबरीमाला ऐसे कई उदाहरण है जहां श्रृद्धालु अति उत्साह की वजह से कुचले जाते हैं, कहीं हाथरस सत्संग जैसे अफरा–तफरी की वजह से तो कहीं यात्रा में होने वाले दुर्घटना के वजह से। कई जगह तो धार्मिक सभा का आयोजन कराने वाले धर्मगुरु का भी घोर लापरवाही देखी गई है। हाथरस सत्संग की घटना इसी का एक उदाहरण है। हालांकि पुलिस कांस्टेबल से स्वयंभू धर्म गुरु बने नारायण साकार उर्फ भोले बाबा ऐसे पहले धार्मिक गुरु नहीं है जो अपने अनुयायियों के प्रति लापरवाह है। नारायण साकार उर्फ भोले बाबा का मूल नाम सूरजपाल जाटव है।

धार्मिक सभा में प्रशासन की क्या भूमिका रहती हैं
यदि सत्संग या कोई धार्मिक सभा किसी घर या निजी स्थान पर आयोजित किया जाता है तो आमतौर पर किसी औपचारिक परमिशन की जरूरत नहीं पड़ती है, लेकिन यदि सत्संग या धार्मिक सभा किसी सार्वजनिक स्थान पर आयोजित होने वाला हो जहां बहुत संख्या में श्रद्धालुओं की आने की संभावना हो तो आयोजकों को वहां के स्थानीय प्रशासन से अनुमति प्राप्त करनी होती है। जिला प्रशासन और स्थानीय पुलिस को इसकी जानकारी देकर परमिशन लेना जरूरी होता है। जिस जिले में सत्संग या सभा हो रहा हो उसे जिले के डीएम या एसडीएम की परमिशन जरूरी है। साथ ही स्थानीय थाने में इसकी सूचना देनी पड़ती है। आयोजकों को सभा के लिए आवेदन करना पड़ता है और आवेदन के जरिए कई जानकारी देनी पड़ती है, जैसे सत्संग कितने दिनों तक चलेगी, सभा में कितने लोगों की आने की संभावना है इत्यादि। उस हिसाब से प्रशासन को सुरक्षा मुहैया करना पड़ता है।
हाथरस सत्संग के परमिशन किसने दी थी?
हाथरस सत्संग के मामले में वहां के डीएम आशीष कुमार ने जानकारी दी है कि एसडीएम ने इस सत्संग की परमिशन दी थी। वहीं स्थानीय सूत्रों के मुताबिक स्थानीय पुलिस ने बाहरी सुरक्षा का जिम्मा लिया था लेकिन सत्संग के अंदर की सुरक्षा खुद बाबा ने अपनी सेनन को संभालने को कहा था। अब सवाल यह उठता है कि क्या डीएम, कमिश्नर, एडीजी और आईजी इस कार्यक्रम के आयोजन से अनजान थे?
वहीं स्थानीय पुलिस से जब सुरक्षा के मामले में सवाल किया गया तो उन्होंने बताया कि बाबा के सत्संग के आयोजकों ने कार्यक्रम में आने वालों की संख्या को कम करके बताया। आयोजकों ने जितने लोगों के बारे में बताया था उसे तीन गुना ज्यादा लोग कार्यक्रम में शामिल हुए थे।