
हाल ही में सुप्रीम कोर्ट के द्वारा एससी व एसटी के आरक्षण में वर्गीकरण को लेकर दिए फैसले पर नगीना लोकसभा क्षेत्र से नवनिर्वाचित सांसद तथा भीम आर्मी के राष्ट्रीय अध्यक्ष चंद्रशेखर आजाद ने अपनी प्रतिक्रिया दी है। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के फैसले को संविधान के मूल भावना के विरुद्ध बताते हुए अपने असंतुष्टि जाहिर की।
आपको बता दें सुप्रीम कोर्ट ने अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के आरक्षण को लेकर कुछ ऐसा ही फैसला दिया है, जिससे पूरे देश के दलित वर्ग में हाहाकार मचा हुआ है। सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले को दलित समुदाय के लोग अपने अस्मिता पर हमले के रूप में देख रहे हैं। दलित समुदाय सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले को अपने हक और अधिकार को छीनने के रूप में देख रहा है, जो अधिकार उन्हें बाबा साहब डॉ. भीमराव अंबेडकर के द्वारा रचित भारतीय संविधान से मिला था।
सुप्रीम कोर्ट ने क्या फैसला दिया था?
आपको बता दें कि 1 अगस्त 2024 को एक ऐतिहासिक फैसले में भारत के मुख्य न्यायाधीश डी. वाई. चंद्रचूड़ की अगुवाई में सुप्रीम कोर्ट की 7 जजों की बेंच ने वर्ष 2004 के ई. वी. चिन्नैया के फैसले को खारिज कर दिया।
दरअसल वर्ष 2004 के ई. वी. चिन्नैया के फैसले में कहा गया था कि – राज्य की विधानसभाएं प्रवेश और सार्वजनिक रोजगार में आरक्षण हेतु अनुसूचित जातियों (SC) को उपजातियों में वर्गीकृत नहीं कर सकती है। डी. वाई. चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली बेंच के नए फैसले ने इसे खारिज करते हुए राज्य की विधानसभाओं को प्रवेश और सार्वजनिक रोजगार में आरक्षण के लिए अनुसूचित जातियों को उपजातियों में वर्गीकरण करने का अधिकार दे दिया।
नए फैसले के अनुसार सुप्रीम कोर्ट का मानना है कि – अनुसूचित जातियां एकरूप समूह नहीं है और इसलिए राज्यों को एससी समुदाय के भीतर उपजातियों के बीच भेदभाव और पिछड़ेपन के विभिन्न स्तरों को पहचानने की अनुमति देता है। मुख्य न्यायाधीश डी. वाई. चंद्रचूड़ ने जोर देकर कहा कि – राज्यों को उप वर्गीकरण की अनुमति देने से अनुसूचित जातियों की पहचान करने के लिए अनुच्छेद 341 के तहत राष्ट्रपति के विशेष अधिकार का उल्लंघन नहीं है।
बेंच में शामिल न्यायमूर्ति विक्रमनाथ ने तो न सिर्फ अनुसूचित जातियों को उपजातियों में बांटने की बात की बल्कि उन्होंने तो अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के बीच क्रीमी लेयर लाने का भी विचार का समर्थन किया।
चंद्रशेखर आजाद ने क्या प्रतिक्रिया दी
सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बाद तमाम सामाजिक न्याय की आवाज उठाने वाले व्यक्ति और संस्था ने इसकी आलोचना करना शुरू कर दिया। दलित समाज के लोग इस फैसले को अपने ऊपर किए गए प्रहार के रूप में देख रहा है। वही इस मामले में भीम आर्मी प्रमुख व आजाद समाज पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष चंद्रशेखर आजाद ने कहा कि – यह फैसला कोई संयोग नहीं है, बल्कि दलित समुदाय पर किया गया प्रयोग है। आपको बता दें कि चंद्रशेखर आजाद उत्तर प्रदेश में स्थित नगीना लोकसभा सीट से नवनिर्वाचित सांसद है। सांसद चंद्रशेखर आजाद ने इस फैसले पर अपना असहमति जताते हुए मान्यवर कांशीराम के द्वारा दिए गए वक्तव्य को दोहराया। उन्होंने कहा कि मान्यवर कांशीराम कहा करते थे कि “जो काम सरकार और खास कर सवर्ण समुदाय के लोग संसद के जरिए नहीं कर पाएगा, वह काम न्यायपालिका के द्वारा करवाएगा।”
यह नियम न्यायपालिका पर भी लागू हो
हालांकि चंद्रशेखर आजाद यही नहीं रुके, उन्होंने तो इस फैसले से संबंधित कुछ मांग भी सामने रख दिए। उन्होंने इस पर टिप्पणी करते हुए कहा कि – यदि न्यायपालिका को दलित समुदाय के प्रति इतनी ही सहानुभूति है तो यह वर्गीकरण का काम न्यायपालिका अपने यहां से ही शुरू करे। देश के सुप्रीम कोर्ट समेत सभी हाईकोर्ट में इस प्रकार का वर्गीकरण कर आंकड़े प्रस्तुत करें, ताकि देश को भी पता चले कि न्यायपालिका में दलितों का कितनी भागीदारी है। अदालतों में विशेष कर जहां पर जजों की नियुक्ति कॉलेजियम प्रणाली के द्वारा होता है वहां दलितों की संख्या कितनी है? आपको बता दें कि हमारे देश में उच्च न्यायालय और सर्वोच्च न्यायालय में जजों की नियुक्ति कॉलेजियम सिस्टम से ही होता है।
नगीना के सांसद चंद्रशेखर आजाद ने तो यहां तक कह दिया कि – जिन सात जजों की बेंच ने इस फैसले को दिया है, उनमें कितने जज किस सामाजिक पृष्ठभूमि से आते हैं?सबसे पहले यही देश के सामने रखा जाए। तब न एक उदाहरण भी पेश हो सकता है।
न्यायपालिका में दलितों की भागीदारी का मांग उठने लगा
आपको बता दें कि संसद चंद्रशेखर आजाद के साथ-साथ कई ऐसे सामाजिक न्याय के पक्षधर व्यक्तियों ने इस बात पर जोर दिया कि – यदि हमारे न्यायपालिका को लगता है कि दलित समुदाय में किसी एक जाति के हक को कोई दूसरा खा रहा है तो इसकी शुरुआत अदालत अपने यहां से ही करे। अदालत को यह आंकड़ा जारी करना चाहिए कि आज तक सर्वोच्च न्यायालय में कितने जज एससी, एसटी या ओबीसी से है। वहीं कई लोग इस बेंच में शामिल जजों की मंशा पर भी सवाल खड़ा कर दिया और सवाल करने लगे कि – सबसे पहले यह पता चलना चाहिए कि इस बेंच में शामिल जजों में कौन-कौन किस पृष्ठभूमि से आते हैं?
कौन-कौन जज थे इस फैसले में शामिल
सुप्रीम कोर्ट के द्वारा जब से यह फैसला आया है तब से सभी दलित समुदाय के साथ तमाम सामाजिक न्याय के पक्षधर लोगों के जहां में एक ही सवाल घूम रहा है कि इस बेंच में शामिल जजों की सामाजिक पृष्ठभूमि क्या थी, कौन-कौन इस बेंच में शामिल थे?
आपको बता दें कि इस लैंडमार्क फैसले के लिए सात न्यायाधीशों की खंडपीठ बनी थी, जिसकी अध्यक्षता मुख्य न्यायाधीश डी. वाई. चंद्रचूड़ कर रहे थे। चीफ जस्टिस डी. वाई. चंद्रचूड़ के अलावा जस्टिस विक्रम नाथ, जस्टिस पंकज मित्तल, जस्टिस मनोज मिश्रा, जस्टिस सतीश चंद्र मिश्रा, जस्टिस बेला त्रिवेदी और जस्टिस वी आर गवई भी शामिल थे। अनुसूचित जातियों को उपजातियां में वर्गीकृत करने वाले मुकदमे पर सुनवाई करते हुए अनुसूचित जातियों को उपजातियां में बांटने के पक्ष में 6 : 1 से फैसले को सुनाया गया। यानी उन सभी 7 जजों में से 6 जजों ने इस बात पर अपना सहमति दर्ज कराया कि एससी समुदाय का बंटवारा होना चाहिए। वही एक जज ने इस फैसले से अपना असहमति जताया।
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