
नामांकन के दिन ही AIRF/ECRKU के सभी दावे की हवा निकल गई
देश के अलग-अलग हिस्सों की तरह पूर्व मध्य रेलवे, हाजीपुर में भी यूनियन के चुनाव का जोर पकड़ने लगा है। इसी क्रम में बीते दिन 22 अक्टूबर को ECRKU अपना नामांकन भरने के लिए जोन मुख्यालय हाजीपुर पहुंचे। लेकिन इस कार्यक्रम में उम्मीद के मुताबिक भीड़ जुटाने में ECRKU पूरी तरह विफल रही। अपने नामांकन कार्यक्रम में ECRKU के अपने कार्यकर्ता और गिने-चुने पदाधिकारी ही पहुंचे। आपको बता दें कि रेलवे में यूनियन के मान्यता को लेकर चुनाव की तिथि की घोषणा हो गई है। लंबे अरसे के बाद फिर से रेलवे में यूनियन के मान्यता के लिए चुनाव होने जा रहा है। ऐसे में रेलवे कर्मचारियों के तमाम पार्टी के यूनियन अपने-अपने चुनाव प्रचार में लग गए हैं।
आपको बता दें कि भारतीय रेलवे में यूनियन के मान्यता को लेकर 4, 5 और 6 दिसंबर को वोटिंग होने की घोषणा हुई है। हालांकि रेलवे के द्वारा इस तिथि को वोटिंग को लेकर कई लोगों ने आपत्ति भी जताई है। क्योंकि 6 दिसंबर के दिन संविधान निर्माता बाबा साहब भीमराव अंबेडकर के महापरिनिर्वाण दिवस (पुण्यतिथि) के रूप में मनाया जाता है। ऐसे में 6 दिसंबर के दिन यूनियन के मान्यता के लिए वोटिंग होने पर लोगों ने असहमति जताई है। हालांकि अभी तक इस पर कोई आधिकारिक जवाब नहीं आया है।
पूर्व मध्य रेलवे (हाजीपुर) में चार यूनियन मैदान में है
दरअसल अभी चुनाव में भाग लेने वाले सभी पार्टी (यूनियन) का नामांकन हो रहा है। मान्यता चुनाव के यूनियन की नामांकन की प्रक्रिया 25 अक्टूबर तक चलेगी। इसी क्रम में 22 अक्टूबर को AIRF के सदस्य ECRKU अपना नामांकन दाखिल करवाने पहुंची थी। आपको बता दें पूर्व मध्य रेलवे हाजीपुर में चार यूनियन चुनाव मैदान में है। इसमें ईस्ट सेंट्रल रेलवे कर्मचारी यूनियन(ECRKU), ईस्ट सेंट्रल रेलवे एम्पलाई यूनियन(ECREU), ईस्ट सेंट्रल रेलवे मेंस कांग्रेस(ECRMC)तथा ईस्ट सेंट्रल रेलवे मजदूर यूनियन(ECRMS)शामिल है।
ECRKU के खिलाफ दिखा कर्मचारियों का आक्रोश
बीते दिन 22 अक्टूबर को अपना नामांकन के लिए महाप्रबंधक कार्यालय व जोन के मुख्यालय हाजीपुर पहुंचे।इस नामांकन कार्यक्रम में पार्टी के गिने-चुने पदाधिकारी ही पहुंचे जबकि ECRKU पिछले दो बार से सत्ता में है। पूर्व मध्य रेलवे में भी दो बार से मान्यता प्राप्त यूनियन ECRKU ही है। इसके बावजूद भी नामांकन के दिन बेहद कम लोग उपस्थित होना इस बात को दर्शाता है कि कहीं ना कहीं इन्होंने अपने वोटरों के बीच अपना विश्वास खो दिया है।
हाजीपुर में ECRKU और ECRKU में है सीधी लड़ाई
पूर्व मध्य रेलवे में भले ही चार पार्टियां मैदान में है, लेकिन यहां सीधी लड़ाई ईस्ट सेंट्रल रेलवे कर्मचारी यूनियन(ECRKU) और ईस्ट सेंट्रल रेलवे मेंस कांग्रेस(ECRMC) के बीच है। जहां ECRKU लगातार दो बार से सत्ता पर आसीन हैं वहीं ECRMC इस बार पूरी ताकत के साथ चुनाव के मैदान में है। मेंस कांग्रेस लगातार कर्मचारियों के बीच जनसंपर्क अभियान चला रहा है। वह सत्ता में बैठे ECRKU के द्वारा किए गए लापरवाही और उसकी निष्क्रियता को कर्मचारियों के बीच पहुंचा रही है।
आम कर्मचारी क्या सोचती है ECRKU के बारे में
इस पूरे चुनावी माहौल में उन कर्मचारियों का भी विचार जानना जरूरी है, जो किसी भी पार्टी के कार्यकर्ता नहीं है। इस चुनावी उत्सव में आम कर्मचारी अपना मत किधर डालेगी यह सबसे जरूरी बात है। क्या इस बार सत्ता परिवर्तन करके ECRMC को मौका देगी या लगातार तीसरी बार ECRKU पर ही अपना विश्वास जताए रहेगी?
इस सवालों का जवाब जानने के लिए हमने कुछ कर्मचारियों से बातचीत किया। पहले तो उन्होंने कुछ बताने से इनकार कर दिया, लेकिन बाद में नाम न छापने की शर्त पर अपनी बात रखी। जब उनसे पूछा गया कि क्या इस बार वोट ECRKU को ही देना है या किसी नई पार्टी को मौका दीजिएगा ? तो इसके जवाब में उन्होंने कहा कि ECRKU अपना विश्वास कर्मचारियों के बीच से खो दिया है। उन्होंने आगे कहा कि – ECRKU न सिर्फ पूर्व मध्य रेलवे, हाजीपुर में बल्कि पूरे देश में अपना विश्वास खो दिया है। आपको बता दें कि ECRKU केंद्रीय स्तर पर AIRF का शाखा है, जिसका मुखिया वर्तमान में शिव गोपाल मिश्रा है।
AIRF/ECRKU ने अपना विश्वास खो दिया है : कर्मचारी
इसी सवाल के क्रम में एक अन्य कर्मचारी से जब इसके बारे में पूछे कि ECRKU ने अपना विश्वास कैसे खो दिया? तो उन्होंने इसके चार उदाहरण दिए–
पहला, सातवें वेतन आयोग में बेहद असमान वेतन वृद्धि:—
उन्होंने इसका पहला कारण सातवें वेतन आयोग को ठीक ढंग से लागू न करना और न्यूनतम वेतन को बेहद ही कम रखवाना बताया। आपको बता दें कि साल 2016 में सातवां वेतन आयोग लगा था। सातवें वेतन आयोग में अधिकतम वेतन तो बढ़ाया लेकिन न्यूनतम वेतन को सही अनुपात में नहीं बढ़ाया। जहां अधिकतम वेतन ढाई लाख रुपए प्रति महीना बढ़ाकर किया, वहीं न्यूनतम वेतन को मात्र 18000 रुपए प्रति महीना तक ही रहने दिया। सरकार के इस कदम को लेकर सभी कर्मचारियों ने विरोध किया और मान्यता प्राप्त यूनियन से अनुरोध किया कि इस मुद्दे को सरकार के समक्ष रखा जाए। लेकिन उन्होंने न तो सरकार से कोई बातचीत किया और इधर कर्मचारियों को भी गुमराह करके रखा कि हम न्यूनतम वेतन ₹26000 की मांग कर रहे हैं। जबकि वास्तव में उन्होंने सरकार के पास कोई बात नहीं रखी।
दूसरा, राष्ट्रव्यापी हड़ताल को भंग कर सरकार से हाथ मिला लिया:—
इसके बाद उन्होंने दूसरा कारण राष्ट्रव्यापी हड़ताल को भंग करना बताया आपको बता दें कि सातवें वेतन आयोग को ठीक ढंग से लागू नहीं करने पर सभी रेल कर्मचारियों के अंदर आक्रोश भरा था। केंद्र सरकार के इस रवैया से नाखुश रेल कर्मचारियों ने सरकार का विरोध करना शुरू कर दिया। जगह-जगह पर केंद्र सरकार की शवयात्रा निकाल कर नारेबाजी की। अंत में सभी कर्मचारियों ने मिलकर फैसला लिया कि 11 जुलाई को राष्ट्रव्यापी रेल चक्का जाम करेंगे। 11 जुलाई 2016 को रेल का राष्ट्रव्यापी चक्का जाम में खास बात यह थी कि इस हड़ताल में लोको पायलट और ट्रेन मैनेजर (गुड्स गार्ड) ने भी शामिल होने का ऐलान किया था।
लेकिन उससे पहले ही सत्ताधारी यूनियन अर्थात AIRF के चीफ शिव गोपाल मिश्रा ने सरकार से समझौता कर लिया। इस प्रकार शिव गोपाल मिश्रा ने अपनी निजी स्वार्थ में पूरे रेल कर्मचारी का भविष्य को अंधेरा में धकेल दिया।
तीसरा, सरकार के द्वारा रेलवे के निजीकरण करने में यूनियन का मौन समर्थन:—
अपने जवाब के क्रम में उन्होंने इसका तीसरा कारण निजीकरण पर AIRF/ECRKU की चुप्पी को बताया। आपको बता दें की रेलवे में पिछले 10 सालों से बेतहाशा निजीकरण की बढ़ोतरी हुई है। जो कार्य पहले सरकारी कर्मचारियों के द्वारा कराया जाता था, उसमें से अधिकांश कार्य अब निजी ठेकेदारों के हाथों में सौंप दिया। रेलवे में यह निजीकरण पिछले 10 सालों से चल रहा है। इस पूरे मसले पर सत्ता में बैठे मान्यता प्राप्त यूनियन चुपचाप तमाशा देख रही है। उन्होंने आगे कहा कि रेलवे में निजीकरण होने से ठेके पर आए मजदूरों के द्वारा रेलवे में कार्य के प्रति जिम्मेवारी घटती चली गई, जो आए दिन दुर्घटना का कारण भी बन गया। लेकिन बदनाम रेलवे के सरकारी कर्मचारी ही हुआ। आज भी कई जगह ऐसा देखा गया है कि रेलवे कार्य में कोई तकनीकी गड़बड़ी पाया जाता है तो दंडित सरकारी कर्मचारियों को ही किया जाता है जबकि वह कार्य प्राइवेट कर्मचारी से करवाया जाता है।
चौथा, AIRF/ECRKU द्वारा UPS पेंशन स्कीम को समर्थन करना:—
उन्होंने चौथा कारण AIRF/ECRKU द्वारा UPS पेंशन स्कीम को समर्थन करना बताया। आपको बता दें कि अन्य केंद्रीय कर्मचारियों की भांति रेलवे कर्मचारी भी पुरानी पेंशन स्कीम(OPS) को लेकर लंबी लड़ाई लड़ रही है। विदित हो कि केंद्र सरकार ने साल 2004 में पुरानी पेंशन स्कीम (OPS) को खत्म कर नई पेंशन स्कीम(NPS) को लागू किया था। केंद्रीय कर्मचारियों के द्वारा NPS का विरोध शुरू से ही रहा है। क्योंकि नई पेंशन स्कीम के तहत केंद्रीय कर्मचारियों की कई सारी कल्याणकारी सुविधा को समाप्त कर दिया गया। ऐसे में एक लंबे समय से केंद्रीय कर्मचारियों की मांग रही है कि फिर से OPS बहाल किया जाए। वर्तमान सरकार ने OPS तो लागू नहीं किया लेकिन OPS के जगह UPS (यूनिफाइड पेंशन स्कीम) लाया। केंद्र सरकार का दावा है कि UPS, NPS से अच्छा है और लगभग OPS के जैसा ही सुविधा देता है। लेकिन केंद्रीय कर्मचारियों ने सरकार के दावे को सिरे से खारिज कर दिया। केंद्रीय कर्मचारी OPS से नीचे मानने को तैयार नहीं है। कर्मचारियों का दावा है कि सरकार UPS लाकर कोई नई बात नहीं की है। उनका मानना है कि UPS और NPS में कोई अंतर नहीं है, यह सिर्फ घुमाकर नाक पकड़वाने वाली बात है। कई कर्मचारियों का तो यह भी दावा है कि कई मामले में UPS, NPS से भी खराब स्कीम है।
लेकिन इसी बीच सत्ता में बैठे यूनियन अर्थात AIRF चीफ शिव गोपाल मिश्रा ने UPS का समर्थन कर दिया। उन्होंने आगे कहा कि शिव गोपाल मिश्रा ने UPS का न सिर्फ समर्थन किया, बल्कि इसकी जमकर तारीफ की और UPS को एक ऐतिहासिक उपलब्धि बताया।
इस प्रकार इन तमाम कृत्यों के वजह से AIRF/ECRKU धीरे-धीरे कर्मचारियों के बीच से अपना विश्वास खोता चला गया। उन्होंने कहा कि कई मामले पर तो ऐसा लगने लगता है कि शिव गोपाल मिश्रा कर्मचारियों के नेता नहीं, बल्कि सरकार के प्रवक्ता है जिस प्रकार वह सरकार के पक्ष लेते हैं।
हालांकि यह तो समय ही बताया कि कौन बाजी मारता है क्या सच में ECRKU/AIRF अपना विश्वास खो चुकी है या जनता के बीच उनका लगा अभी भी बरकरार है। ठीक उसी प्रकार पिछले दो बार से सत्ता से बाहर मेंस कांग्रेस इस बार अपना रंग जमा पाएगी या सिर्फ भीड़ ही दिखाएंगे। क्योंकि समर्थन में भीड़ जुटाना और उसे भीड़ को वोट में बदलना यह दोनों बिल्कुल अलग-अलग बात होती है।