
दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को अंतरिम जमानत देने वाले फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने प्रवर्तन निदेशालय (ED) को निष्पक्ष होकर कार्य करने की नसीहत दे दी। कोर्ट ने ED के कार्यशैली पर टिप्पणी करते हुए कहा कि – किसी व्यक्ति को धन शोधन निवारण अधिनियम (PMLA Act) के तहत कब गिरफ्तार किया जाना चाहिए इस पर समान नीति रखने की आवश्यकता है। शराब नीति मामले के संबंध में ED द्वारा केजरीवाल की गिरफ्तारी को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई करते हुए जस्टिस संजीव खन्ना और जस्टिस दीपंकर दत्ता की खंडपीठ ने ED की वेबसाइट पर अपने मामले के संबंध में उपलब्ध अधिकारी आंकड़ों का हवाला देते हुए यह बातें कही।
बेंच ने इस बात का उल्लेख किया कि 31 जनवरी 2023 तक ED के समक्ष 5906 प्रवर्तन मामला सूचना रिपोर्ट (ECIR) दर्ज की गई। दर्ज किए गए केस में 4954 तलाशी वारंट जारी किया गया जिसमें 531ECIR में तलाशी ली गई। पूर्व सांसदों, विधायकों और एमएलसी के खिलाफ दर्ज मुकदमे की कुल संख्या 176 थी। गिरफ्तार किए गए लोगों की संख्या 513 है जबकि दर्ज अभियोजन शिकायतों की संख्या 1142 है।
कोर्ट की खंडपीठ ने कहा
“ये आंकड़े कई सवाल उठाते हैं, जिसमें यह सवाल भी शामिल है कि क्या डीओई ने कोई नीति बनाई है कि उन्हें PML Act के तहत किए गए अपराधों में शामिल व्यक्ति को कब गिरफ्तार करना चाहिए।”
जस्टिस खन्ना द्वारा लिखे गए निर्णय में आगे कहा गया:
“हम जानते हैं कि संविधान के अनुच्छेद 14 के तहत समानता या समानता के सिद्धांत को अनियमितता या अवैधता को दोहराने या बढ़ाने के लिए लागू नहीं किया जा सकता। यदि कोई लाभ या सुविधा गलत तरीके से दी गई है तो कोई अन्य व्यक्ति त्रुटि या गलती के कारण अधिकार के रूप में उसी लाभ का दावा नहीं कर सकता है। हालांकि, यह सिद्धांत तब लागू नहीं हो सकता, जब अधिकारियों के पास दो या अधिक विकल्प उपलब्ध हों। गिरफ्तारी की आवश्यकता और अनिवार्यता का सिद्धांत संभवतः उक्त सिद्धांत स्वीकार करता है। धारा 45 जमानत देने के मामले में डीओई की राय को प्राथमिकता देती है। डीओई को सभी के लिए एक नियम की पुष्टि करते हुए समान रूप से आचरण में सुसंगत कार्य करना चाहिए।”
खंडपीठ ने इस बात का भी जिक्र किया कि – क्या गिरफ्तारी की आवश्यकता या अनिवार्यता को PMLA Act की धारा 19 में एक शर्त के रूप में पढ़ा जाना चाहिए, जो ED के अधिकारियों को गिरफ्तार करने का अधिकार देता है। हालांकि इस संबंध में पीठ ने अनुपातिकता के संवैधानिक सिद्धांत के विकास का उल्लेख किया। चूंकि विजय मदनलाल चौधरी बनाम भारत संघ के निर्णय में तीन जजों की खंडपीठ ने PMLA एक्ट की धारा 19 के संवैधानिक वैधता को बरकरार रखा था। इसलिए कोर्ट ने गिरफ्तारी की आवश्यकता से संबंधित मुद्दे को एक बड़ी पीठ को सौंपने का फैसला किया।