बहुजन नेताओं के चरित्र हनन की राजनीति और ब्राह्मणवादी रणनीति: चंद्रशेखर आज़ाद का उदाहरण
जब भी कोई बहुजन समाज से नेता उभरता है तो ये समाज उसके पर्सनल जीवन पर लांछन क्यों लगाने लगता है? ऐसा अक्सर देखा गया है कि जब ये दमनकारी व्यवस्था उस बहुजन नेताओं को अपने ताकत के दम पर चुप नहीं करा पाते हैं तो वो अपने ट्रोलर के द्वारा उनका चरित्र हनन करने लगता है। कई बार ऐसा देखा गया है कि आरोप लगाने वाले भी उन्हीं समुदाय के लोग होते हैं जिनके लिए वो सड़क से लेकर संसद तक संघर्ष करते नजर आते हैं। लेकिन यदि आप उस पूरे षडयंत्र (Conspiracy) को गौर से समझिएगा तो आपको पता चल जाएगा कि भले ही आरोप उनके समाज के लोग लगा रहे हैं लेकिन उस पूरे खेल का मास्टरमाइंड कोई और ही है। आखि़र ऐसा क्यों होता है? कोई व्यक्ति अपने हक और अधिकार के लिए, अपने समाज के हक और अधिकार के लिए लड़ाई लड़ रहा है तो इससे किसी को क्यों दिक्कत होनी चाहिए ?
विचारधारा को नष्ट करने के चरित्र को कलंकित करना ब्राह्मणवादी राजनीति
भारत जैसे जातिवादी और रूढ़िवादी समाज में जब कोई बहुजन नेता उभरता है, तो वह केवल सत्ता का दावेदार ही नहीं बनता, बल्कि वह उस वर्चस्ववादी व्यवस्था को चुनौती भी देता है, जो सदियों से ब्राह्मणवाद की जड़ें गहरी कर चुकी है। ऐसी परिस्थिति में उस नेता को केवल चुनावी रूप से हराना काफी नहीं होता। उसकी विचारधारा को नष्ट करना और यदि संभव हो तो उसके चरित्र को कलंकित करना ब्राह्मणवादी राजनीति की रणनीति बन जाती है।
आज एक बार फिर आधुनिक बहुजन नेता चंद्रशेखर आज़ाद के साथ कुछ ऐसा ही घटनाक्रम देखने को मिल रहा है। पिछले कुछ दिनों से उनके पर्सनल लाइफ पर बार बार हमला कर चरित्र हनन की कोशिश किया जा रहा है। हालांकि ये कोई ताजुब्ब की बात नहीं है कि ये आरोप एक बाल्मीकि समाज की महिला के द्वारा लगाया जा रहा है।
भीम आर्मी और आज़ाद समाज पार्टी के संस्थापक चंद्रशेखर आज़ाद, जिनकी राजनीतिक सक्रियता न केवल दलित समाज में चेतना का संचार कर रही है, बल्कि ब्राह्मणवादी ढांचे को भी खुली चुनौती दे रही है। इसी कारण उन्हें बार-बार चरित्र हनन, झूठे मामलों और मीडिया ट्रायल का सामना करना पड़ा है।
हाल ही में रोहिणी घावरी नामक बाल्मीकि समाज की महिला ने उनपर उत्पीड़न का गंभीर आरोप लगाए हैं। उन्होंने चंद्रशेखर पर आरोप लगाते हुए लिखा है कि – “भारत की बेटी हूँ बाबा साहब को अपना आदर्श मानती हूँ सच बोलने से डरती नहीं चापलूसी किसी की करती नहीं !! कल से आप सब ने इन फर्जी अंबेडकरवादियों का महिला सम्मान देख ही लिया है !!
बाबा साहब के नाम पर नफ़रत फैलाने वाले यह घटिया लोग महानायिका बहनजी का अपमान कर सकते है तो फिर मैं तो वाल्मीकि समाज की बेटी हूँ मेरा क्या सम्मान करेंगे !! आदरणीय बहनजी ने अपना पूरा जीवन त्याग दिया इनके लिए यह उनके सगे नहीं हुए मेरे क्या होंगे !! इन सब को पता है मैं सच बोल रही हूँ इसलिए दो दिन से फड़फडा रहे है !! जो ग़लत करे वो डरे अब यह लड़ाई बड़ी होने वाली है !! मैं एक कदम भी पीछे नहीं हटने वाली अब बहुत साल बर्दास्त कर लिया मैंने !!
कौन हैं रोहिणी घावरी?
आपको बता दें कि रोहिणी घावरी मध्यप्रदेश के इंदौर की रहने वाली है। वह अपने आपको अंबेडकरवादी कहती है लेकिन उन्होंने कई मौकों पर सार्वजनिक मंच से जय श्री राम का नारे लगाए हैं। जिसके चलते उन्हें आलोचना का सामना करना पड़ा। उनके इस नारों के ऊपर टिप्पणी करते हुए एक यूजर ने लिखा कि – मनुवादियों के टुकड़ों पर पलने वाली, अंबेडकर एक किताब नहीं पड़ी होगी पर राम के बारे में सब कुछ पता है अपने पुरखों के संघर्षों और बलिदान व्यर्थ करने वाली दूसरों पर आरोप लगाने से पहले अपने गिरेबान में झाको, बाबा साहब को अपना आदर्श मानने वाले कभी जय श्री राम नहीं बोल सकते।
हालांकि ये पहला मौका नहीं है कि किसी बहुजन नेताओं को जो अपने समाज के लिए संघर्ष करते हैं उसे किसी ना ना किसी रूप से रूढ़िवादी लोग परेशान करते रहते हैं। कभी उसपर झूठा भ्रष्टाचार का आरोप लगा देते हैं तो कभी उनके चरित्र पर सवाल उठाते हैं। ये कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि इसमें कई बार खुद दलित समुदाय के लोग ही शामिल होते हैं। आज चंद्रशेखर आजाद जी के साथ जो करने की कोशिश किया जा रहा है वही कोशिश कभी मान्यवर कांशीराम जी के साथ भी करने का प्रयास किया गया था। आपको याद होगा कि किस प्रकार एक मीडिया कर्मी ने मान्यवर कांशीराम जी के चरित्र पर लांछन लगाने का प्रयास किया था।
चरित्र हनन: एक ऐतिहासिक हथियार
ब्राह्मणवाद की यह चाल नई नहीं है। इतिहास गवाह है कि जब-जब कोई बहुजन व्यक्ति शिक्षा, राजनीति, या समाज सुधार के क्षेत्र में आगे बढ़ा, तो उसे बदनाम करने के लिए हरसंभव प्रयास किए गए। डॉ. भीमराव अम्बेडकर से लेकर कांशीराम तक, हर बहुजन नेता को यह कीमत चुकानी पड़ी है। ब्राह्मणवादी तंत्र को यह भय रहता है कि यदि बहुजन समाज अपने असली नायकों को पहचाने और संगठित हो जाए, तो सदियों पुरानी सामाजिक असमानता की दीवारें भरभरा कर गिर जाएंगी। चंद्रशेखर आज़ाद इस दीवार को ढहाने के लिए एक हथौड़े की तरह उभरे हैं—इसलिए उन्हें रोकने के लिए चरित्र हनन का अस्त्र चलाया जा रहा है।
चंद्रशेखर आज़ाद: उभार और जनप्रियता का कारण
उत्तर प्रदेश के सहारनपुर जिले से निकल कर चंद्रशेखर आज़ाद ने भीम आर्मी के माध्यम से दलित युवाओं में स्वाभिमान और प्रतिरोध की चेतना जगाई। उनका नारा “जय भीम, जय मण्डल” केवल एक उद्घोष नहीं, बल्कि सामाजिक न्याय और आरक्षण के अधिकार की पुनर्पुष्टि है।
वह केवल सड़कों पर आंदोलन करने वाले नेता नहीं हैं, बल्कि उन्होंने कानूनी लड़ाइयाँ भी लड़ी हैं और संसदीय राजनीति में भाग लेकर यह स्पष्ट किया है कि वे केवल विरोध नहीं, बल्कि सत्ता परिवर्तन के भी प्रतीक बन सकते हैं।
क्यों चंद्रशेखर आज़ाद ब्राह्मणवादी राजनीति के निशाने पर हैं?
चंद्रशेखर आज़ाद की उपस्थिति और उनकी आक्रामक राजनीति ने दलित, पिछड़े और मुस्लिम युवाओं को एक मंच पर लाकर खड़ा किया है। यह वही सामाजिक गठबंधन है जिससे ब्राह्मणवाद को सबसे अधिक खतरा है।
इसलिए उन्हें जेल में डाला गया, झूठे आरोपों में फंसाया गया, मीडिया के जरिए उनकी छवि को “अराजक”, “कट्टर”, या “अपराधी” बताने का प्रयास किया गया। सोशल मीडिया पर उनके खिलाफ ट्रोलिंग चलती है, और यहां तक कि उनके निजी जीवन को निशाना बनाने की कोशिशें होती हैं।
यह वही राजनीति है जिसने पहले डॉ. अम्बेडकर को “ब्रिटिश एजेंट”, कांशीराम को “जातिवादी”, और मायावती को “विकास विरोधी” कह कर बदनाम करने की कोशिश की थी।
मीडिया ट्रायल और ब्राह्मणवादी पत्रकारिता
भारत की मुख्यधारा की मीडिया, जो पूंजीवादी और सवर्ण हितों से संचालित होती है, बहुजन नेताओं को कवर ही तब करती है जब उन्हें किसी विवाद से जोड़ना हो। चंद्रशेखर आज़ाद को भी मीडिया ने कभी उनके एजेंडा या वैचारिक कार्यक्रमों के लिए नहीं दिखाया, बल्कि केवल तब सामने लाया जब वे पुलिस की हिरासत में थे।
जब वे लखीमपुर खीरी कांड में पीड़ितों से मिलने गए, तब उन्हें रोका गया। जब उन्होंने हाथरस में दलित लड़की के बलात्कार और हत्या के बाद इंसाफ की मांग की, तब उन पर धारा 144 के उल्लंघन का आरोप लगाया गया। लेकिन क्या मीडिया ने कभी उन्हें सामाजिक न्याय के संघर्ष के प्रतीक के रूप में प्रस्तुत किया? नहीं! क्योंकि यह ब्राह्मणवादी व्यवस्था के लिए घातक होता।
चरित्र हनन की नीतियाँ: कौन करता है और क्यों करता है?
- राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी – जो जानते हैं कि आज़ाद की राजनीति उनके जातिगत समीकरणों को तोड़ सकती है।
- ब्राह्मणवादी बुद्धिजीवी वर्ग – जो बहुजन विचारधारा को “हिंसक”, “प्रतिगामी” या “अल्पसंख्यक परस्त” कहकर नकारता है।
- मुख्यधारा मीडिया – जो बहुजन एजेंडे को “मुद्दाविहीन” या “लोकप्रियता की लालसा” के रूप में प्रस्तुत करती है।
क्या चंद्रशेखर आज़ाद गलती नहीं कर सकते?
बिलकुल कर सकते हैं। वह कोई देवता नहीं, एक सामान्य मनुष्य हैं। लेकिन क्या उनके हर राजनीतिक निर्णय को निजी चरित्र से जोड़ देना न्यायसंगत है?
अगर कोई सवर्ण नेता अपने विरोधी से लड़ता है, तो उसे “आक्रामक रणनीतिकार” कहा जाता है। लेकिन जब आज़ाद ऐसा करते हैं, तो उन्हें “अराजक तत्व” करार दिया जाता है। यही दोहरा मापदंड है, जो ब्राह्मणवाद की बुनियाद है।
बहुजन चेतना का निर्माण और रक्षा
आज की आवश्यकता है कि हम केवल चंद्रशेखर आज़ाद को एक व्यक्ति के रूप में न देखें, बल्कि उनके रूप में एक चेतना को देखें। यह चेतना है— दमन का प्रतिरोध, संगठन की शक्ति, संवैधानिक अधिकारों की मांग, और मानव गरिमा की रक्षा।
हमें यह समझना होगा कि बहुजन नेताओं का चरित्र हनन दरअसल बहुजन समाज के मनोबल को तोड़ने की कोशिश है। यदि हम इसे पहचान लें, तो हम न केवल चंद्रशेखर आज़ाद जैसे नेताओं की रक्षा कर पाएंगे, बल्कि उनके माध्यम से अपने आत्म-सम्मान की भी रक्षा करेंगे।
चंद्रशेखर आज़ाद की रणनीति: हिंसा नहीं, संविधान का हथियार
यह भी याद रखना चाहिए कि चंद्रशेखर आज़ाद ने कभी भी हिंसा का समर्थन नहीं किया। उन्होंने बार-बार बाबा साहब के संविधान की बात की है। उन्होंने कहा है:
“हम संविधान के भीतर रहकर बदलाव लाएँगे, लेकिन अगर कोई हमें संविधान से बाहर धकेलेगा, तो हम उसे संविधान के भीतर घसीट लाएँगे।”
यह दृष्टिकोण ही उन्हें एक क्रांतिकारी नेता बनाता है—जो आक्रोश को व्यवस्था परिवर्तन में बदलने का हुनर रखते हैं।
चरित्र हनन से सावधान रहने की ज़रूरत
आज जब हम अपने चारों ओर देखते हैं, तो यह स्पष्ट हो जाता है कि बहुजन नेताओं का चरित्र हनन किसी एक व्यक्ति की गलती नहीं, बल्कि एक सुनियोजित ब्राह्मणवादी राजनीति का हिस्सा है।
हमें यह समझना होगा कि यह रणनीति सिर्फ आज़ाद जैसे नेताओं को नहीं रोक रही, बल्कि वह हर उस दलित-पिछड़े-मुस्लिम युवा को रोक रही है, जो अपने हक की लड़ाई लड़ना चाहता है। चंद्रशेखर आज़ाद एक ऐसा नाम है जो आज के समय में बहुजन समाज की चेतना, संघर्ष और उम्मीद का प्रतीक बन चुका है। आज़ाद न केवल एक सामाजिक कार्यकर्ता हैं, बल्कि वे उस नई राजनीतिक धारा का प्रतिनिधित्व करते हैं जो बाबा साहब अम्बेडकर के विचारों को लेकर गांव-गांव और गली-गली में चेतना फैला रही है। ऐसे में उन्हें बदनाम करने की कोशिश कोई संयोग नहीं, बल्कि एक सुनियोजित ब्राह्मणवादी रणनीति का हिस्सा है।
इतिहास गवाह है कि जब भी कोई बहुजन नेता जनसमर्थन हासिल करता है और व्यवस्था के खिलाफ खड़ा होता है, तब सत्ता और सवर्णवादी ताकतें उसे कुचलने के लिए हर हथकंडा अपनाती हैं—चाहे वह चरित्र हनन हो, झूठे मुकदमे हों, या मीडिया ट्रायल। चंद्रशेखर आज़ाद को “गुंडा”, “जातिवादी” या “अराजक” कह कर पेश करने की कोशिशें उसी मानसिकता का विस्तार हैं, जो कभी बाबा साहब को भी “ब्रिटिश एजेंट” कहती थी।
असल में यह हमला चंद्रशेखर आज़ाद पर नहीं, बल्कि उस उभरती हुई बहुजन राजनीति पर है जो अपनी शर्तों पर बात कर रही है, अपने मुद्दों को खुद तय कर रही है, और सत्ता की कठपुतली बनने से इनकार कर रही है। यह राजनीति दलालों की राजनीति नहीं है, यह उस समाज की राजनीति है जो सदियों तक दबी-कुचली रही, और अब बोलना सीख रही है।
ऐसे में चंद्रशेखर आज़ाद को बदनाम करने की कोशिशों का बहुजन समाज को एकजुट होकर उस मनुवादी विचारधारा का विरोध करना चाहिए।
हमें चंद्रशेखर आज़ाद जैसे नेताओं के साथ खड़े होंना चाहिए। हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि जब हम सत्ता की राजनीति में कदम रखें, तो हमसबों को कंधों से कंधा मिलाकर खड़े होंना चाहिए। हमें चंद्रशेखर आज़ाद जैसे नेताओं को गिराने की कोशिश करने वाली हर ब्राह्मणवादी चाल को पहचानना और उसका जवाब जनचेतना से देना होगा; क्योंकि यह केवल एक नेता की बात नहीं है, बल्कि यह पूरे बहुजन समाज के आत्म-सम्मान की लड़ाई है।